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    Shani Amavasya 2025: कब है शनि अमावस्या? इन मंत्रों के जप से पितृ दोष होगा दूर, प्रसन्न होंगे पूर्वज

    धार्मिक मत है कि शनि अमावस्या (Shani Amavasya 2025) पर सुबह पवित्र नदी में स्न्नान जप-तप और दान करने से पितरों को शांति मिलती है। साथ ही पितरों का तर्पण और पिंडदान भी जरूर करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि शनि अमावस्या पर इन कामों को करने से साधक के जीवन के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं और पितृ दोष दूर होता है।

    By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Tue, 25 Mar 2025 02:44 PM (IST)
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    Shani Amavasya 2025: इन मंत्रों के जप से करें पितरों को प्रस्नन (Pic Credit-Freepik)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शनि अमावस्या का पर्व शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए अच्छा माना जाता है। इस बार चैत्र माह में शनि अमावस्या मनाई जाएगी। इस तिथि पर पितरों और शनिदेव की पूजा करने से साधक को शनिदोष और पितृ दोष की समस्या से छुटकारा मिलता है।

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    इस दिन पितरों की पूजा-अर्चना के दौरान सच्चे मन पितृ मंत्र का जप करना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मंत्र जप करने से पितरों को शांति मिलती है। साथ ही साधक और उसके परिवार के सदस्यों पर पितरों की कृपा बनी रहती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार शनि अमावस्या का पर्व 29 मार्च (Shani Amavasya 2025 Date) को मनाया जाएगा।

    करें तिल का दान

    इस दिन दान करने का विशेष महत्व है। अगर आप पितरों की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो शनि अमावस्या के दिन श्रद्धा अनुसार मंदिर या गरीब लोगों में काले तिल का दान करें। ऐसा माना जाता है कि शनि अमावस्या पर तिल का दान करने से पितृ दोष दूर होता है। साथ ही सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।

    पितृ मंत्र

    1. ॐ पितृ देवतायै नम:

    2. ॐ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्।

    3. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च

    नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:

    यह भी पढ़ें: Shani Amavasya 2025: शनि अमावस्या पर इस विधि से करें पितरों का तर्पण, पितृ दोष से मिलेगा छुटकारा

    4. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।

    नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।

    5. ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि।

    शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।

    6. गोत्रे अस्मतपिता (पितरों का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम

    गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

    7. गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम

    गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

    8. गोत्रे मां (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम

    गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः"

    (Pic Credit-Freepik)

    9. पितृ निवारण स्तोत्र

    अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।

    नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

    इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।

    सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।

    मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।

    तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

    नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।

    द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

    देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।

    अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

    प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।

    योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

    नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।

    स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

    सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।

    नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

    अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।

    अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

    ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।

    जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।

    तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।

    नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।

    10. पितृ कवच

    कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।

    तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥

    तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।

    तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥

    प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।

    यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥

    उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।

    यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥

    ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।

    अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।

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