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    Satyanarayan Aarti: सच्चे मन से सत्यनारायण का पूजन करने के बाद करें आरती, पूर्ण होती हैं मनोकामनाएं

    By Shilpa SrivastavaEdited By:
    Updated: Mon, 03 Aug 2020 06:45 AM (IST)

    Satyanarayan Aarti आज के दिन यानी सावन के आखिरी सोमवार को कई लोग अपने-अपने घरों में सत्यनारायण की कथा करते हैं। साथ ही व्रत भी रखते हैं।

    Satyanarayan Aarti: सच्चे मन से सत्यनारायण का पूजन करने के बाद करें आरती, पूर्ण होती हैं मनोकामनाएं

    Satyanarayan Aarti: आज के दिन यानी सावन के आखिरी सोमवार को कई लोग अपने-अपने घरों में सत्यनारायण की कथा करते हैं। साथ ही व्रत भी रखते हैं। सत्य को नारायण के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से सत्यनारायण व्रत का अनुष्ठान करता है तो उसे सभी दुखों से मुक्ति मिल जाती है। कालिकाल में इसकी पूजा का महत्व बेहद विशेष माना गया है। सत्य के अनेक नाम हैं, यथा-सत्यनारायण, सत्यदेव। कहते हैं कि अगर विवाह के पहले और बाद में सत्यनारायण की कथा की जाए तो आयु रक्षा और सेहत से जुड़ी समस्‍याओं से राहत मिलती है। वहीं, जब संतान का जन्म होता है तो उसके लिए भी लोग सत्‍यनारायण कथा करवाते हैं।

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    हालांकि, जैसा हमने आपको बताया कि सावन के आखिरी सोमवार को कई लोग अपने-अपने घरों में सत्यनारायण की कथा करते हैं। ऐसे में अगर आप भी आज सत्यनारायण का व्रत और कथा कर रहे हैं तो आपको बता दें कि पूजा-विधि के बाद सत्यनारायण की आरती का भी उतना ही महत्व है। सत्यनारायण की आरती को सही उच्चारण के साथ और सच्चे मन से बोलने से पूजा का फल अधिक हो जाता है। तो चलिए पढ़ते हैं सत्यनारायण जी की आरती।

    सत्यनारायण की आरती:

    जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

    सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ॥ जय लक्ष्मी... ॥

    रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे ।

    नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे ॥ जय लक्ष्मी... ॥

    प्रकट भए कलिकारन, द्विज को दरस दियो ।

    बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो ॥ जय लक्ष्मी... ॥

    दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी ।

    चंद्रचूड़ इक राजा, तिनकी विपति हरी ॥ जय लक्ष्मी... ॥

    वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्ही ।

    सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्हीं ॥ जय लक्ष्मी... ॥

    भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्‌यो ।

    श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो ॥ जय लक्ष्मी... ॥

    ग्वाल-बाल संग राजा, बन में भक्ति करी।

    मनवांछित फल दीन्हो, दीन दयालु हरि ॥ जय लक्ष्मी... ॥

    चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा ।

    धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा ॥ जय लक्ष्मी... ॥

    सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।

    ऋषि-सिद्ध सुख-संपत्ति सहज रूप पावे ॥ जय लक्ष्मी... ॥