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संकष्टी गणेश चतुर्थी: इस कार्य के बिना पूरा नहीं होता है व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व

Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पूर्णिमा के उपरांत कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इसे सकट चौथ भी कहा जाता है।

By kartikey.tiwariEdited By: Published: Tue, 21 May 2019 05:42 PM (IST)Updated: Wed, 22 May 2019 10:15 AM (IST)
संकष्टी गणेश चतुर्थी: इस कार्य के बिना पूरा नहीं होता है व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व

Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat: ज्येष्ठ मास की संकष्टी गणेश चतुर्थी बुधवार को यानी 22 मई को मनाई जाएगी। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, पूर्णिमा के उपरान्त कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इसे सकट चौथ भी कहा जाता है। इस तिथि को विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त सूर्योदय से चंद्रोदय तक प्रथम पूज्य गजानन की भक्तिभाव से अराधना करते हैं।

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संकष्टी गणेश चतुर्थी की पूजा विधि

व्रती को प्रात:काल स्नान करने के बाद पूरब या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजा आसन पर बैठना चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प करके गणेश जी की पूजा-अर्चना शुरू करें। गणेश जी को जल, अक्षत, पुष्प, रोली, फल, मोदक, दुर्वा और पंचामृत अर्पित करें। इस दिन अगर आप तिल के लड्डू का भोग लगाएं तो श्री गणेश जल्द प्रसन्न होंगे। इसके उपरांत व्रती संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत की कथा सुनें और उसके उपरान्त गजानन की आरती करें।     

पूजा का मुहूर्त: दोपहर 02:30 बजे से 03:27 बजे तक। 

राहुकाल: मध्याह्न 12:00 बजे से दोपहर 01:30 बजे तक।

व्रत में चंद्रमा को अर्घ्य देना है जरूरी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जो भी भक्त व्रत रखते हैं, उनके लिए चंद्र दर्शन करना, चंद्रमा को अर्घ्य देना अनिवार्य होता है। बिना इसके व्रत को पूर्ण नहीं माना जाता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती को प्रसाद ग्रहण करना चाहिए, फिर खाना खाकर व्रत पूरा करना चाहिए।

याद रखने वाली बात

जो व्यक्ति संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत रखता है, उसे भूलकर भी मूली का सेवन नहीं करना चाहिए। 

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व

खासतौर पर महिलाएं संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करती हैं। वे ऋद्धि-सिद्धि के दाता श्री गणेश जी से अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य, लंबी आयु और संकटों से रक्षा की मनोकामना करती हैं।

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