Sankashti Chaturthi Katha: भगवान विष्णु के विवाह की यह पौराणिक कथा जरूर पढ़ें
Sankashti Chaturthi Katha जब विष्णु जी का विवाह लक्ष्मी जी से तय हो गया था और तैयारी होने शुरू हो गई थीं तब सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा गया। लेकिन गणेश जी को विवाह का निमंत्रण नहीं दिया गया। जब विष्णु जी की बारात जाने का समय हुआ तब...
Sankashti Chaturthi Katha: जब विष्णु जी का विवाह लक्ष्मी जी से तय हो गया था और तैयारी होने शुरू हो गई थीं, तब सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा गया। लेकिन गणेश जी को विवाह का निमंत्रण नहीं दिया गया। जब विष्णु जी की बारात जाने का समय हुआ तब सभी देवी-देवता शामिल हुए। लेकिन सभी ने देखा गणेश जी वहां उपस्थित नहीं हैं। सभी इस बात की चर्चा करने लगे कि आखिर क्यों गणेश जी को न्यौता नहीं दिया गया? या फिर गणेशजी स्वयं ही नहीं आए हैं? सभी इस बात पर चकित रह गए। इसका कारण सभी ने विष्णु जी से पूछा।
विष्णु जी ने कहा गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्यौता भेजा गया है। अगर वो आना चाहते तो अपने पिता के साथ आ जाते। उन्हें अलग से न्यौता देने की क्या जरूरत। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन चाहिए दिनभर में। अगर वो नहीं आ रहे हैं तो ठीक ही है। दूसरे के यहां जाकर इतना खाना अच्छा नहीं होता है। सब यह बात कर ही रहे थे कि तब किसी ने कहा कि अगर गणेश जी आते हैं तो उन्हें द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे। सबने कहा कि उनसे कहेंगे कि आप चूहे के पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे ऐसे में बहुत पीछे रह जाओगे तो घर का ध्यान ही रख लीजिए द्वारपाल बनकर। तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। इस पर विष्णु जी ने भी अपनी सहमति दे दी।
इतने में गणेशजी विष्णु जी की बारात वाले स्थान पर पहुंच गए। सभी ने उन्हें समझाकर घर की रखावाली करने के लिए घर पर छोड़ दिया। बारात चल दी। अब नारदजी ने देखा कि घर के दरवाजे पर गणेशजी बैठे हुए हैं। नारदजी ने उनसे रुकने का कारण पूछा। गणेशजी ने कहा कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें। इससे वो रास्त खोद देंगे और उनके वाहन जमीन में धंस जाएंगे। इसके बाद वो आपको सम्मानपूर्वक बुलाने के लिए विवश हो जाएंगे।
गणेश जी ने अपनी सेना को आगे भेज दिया। मूषक सेना ने रास्त खोद दिया। जब बारात वहां से निकली तो बारात के रथों के पहिए धरती में धंस गए। उन्होंने लाख कोशिश की लेकिन पहिए नहीं निकल पाए। हर किसी ने अलग-अलग उपाय सुझाए लेकिन कोई हल नहीं निकला। तब नारदजी ने कहा कि उन्होंने गणेश जी का अपमान कर ठीक नहीं किया। अगर उन्हें मनाकर लाया जाए तो कार्य सिद्ध हो सकता है। फिर शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा। नंदी गणेश जी को वहां ले आए। सभी ने गणेशजी की आदर-सम्मान के साथ पूजा की। उसके बाद ही रथ के पहिए बाहर निकल पाए। लेकिन पहिए टूट चुके थे ऐसे में उन्हें सुधारने का काम कौन करेगा इस पर सवाल होने लगे।
वहीं पास में एक खेत था। वहां काम कर रहे व्यक्ति ने मदद की और रथ का कार्य करने के पहले 'श्री गणेशाय नम:' कहकर गणेशजी का वंदन किया। देखते ही देखते उसने रथ के पहियों को ठीक कर दिया। फिर उस व्यक्ति ने कहा कि शुभ काम करने से पहले आपने गणेशजी को नहीं मनाया होगा। न ही उनकी पूजा की होगा। इसी के चलते आप पर यह संकट आया है। ऐसे में अब भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर बारात को लेकर चले कोई संकट नहीं आएगा। गणेश जी का नाम लेकर बारात आगे चल दी। फिर विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न हुआ और सभी सकुशल घर लौट आए।