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    Rudrashtakam: सोमवार को पूजा करते समय करें रुद्राष्टकम का पाठ, मनोकामना होती है पूरी

    By Shilpa SrivastavaEdited By:
    Updated: Mon, 01 Feb 2021 07:00 AM (IST)

    Rudrashtakam आज सोमवार है और आज के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। मान्यता है कि अगर सोमवार के दिन शिवजी की पूजा की जाए तो भोलेशंकर अपने भक्तों से प्रसन्न हो जाते हैं। आइए पढ़ते हैं रुद्राष्टकम।

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    Shiv Stuti: सोमवार को पूजा करते समय करें रुद्राष्टकम का पाठ, मनोकामना होती है पूरी

    Rudrashtakam: आज सोमवार है और आज के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। मान्यता है कि अगर सोमवार के दिन शिवजी की पूजा की जाए तो भोलेशंकर अपने भक्तों से प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर अपने भक्तों से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए इन्हें आशुतोष भी कहा जाता है। धर्मग्रंथों में शिवजी की कई स्तुतियां मौजूद हैं लेकिन रुद्राष्टकम का अपना ही अलग महत्व है। शिवजी के कई भक्त इस स्तुति का पाठ पूजा के दौरान जरूर करते हैं।

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    शिवजी की पूजा करते समय व्यक्ति को उनकी आरती, चालीसा और भेटें जरूर गानी चाहिए। इससे भगवान प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं। पूजा के दौरान भक्तों को आरती और चालीसा का पाठ तो करना ही चाहिए। इसके साथ ही भक्तों को रुद्राष्टकम का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। ध्यान रहे कि इसका पाठ एकदम सटीक होना अनिवार्य है। तो आइए पढ़ते हैं रुद्राष्टकम।

    ये है शिवजी का रुद्राष्टकम:

    नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥

    निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥

    निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।

    करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥

    तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥

    स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥

    चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥

    मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥

    प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥

    त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥

    कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥

    चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥

    न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

    न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥

    न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥

    जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥

    रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।

    ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '