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    Rinmochan Mangal Stotra: ऋणमोचक मंगल स्तोत्र के पाठ से कर्ज से मिलती है मुक्ति, आप भी जरूर करें

    By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik Sharma
    Updated: Sun, 28 Jan 2024 12:15 PM (IST)

    कर्ज का बोझ इंसान को जीवन भर परेशान करता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जो लोग लंबे समय से कर्ज में घिरे हुए हैं उन्हें ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। मान्यता है कि इस ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का विधिपूर्वक पाठ करने से इंसान को कर्ज की समस्या से छुटकारा पा सकता है और कुंडली में से मंगलदोष खत्म होता है।

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    Rinmochan Mangal Stotra: ऋणमोचक मंगल स्तोत्र के पाठ से कर्ज से मिलती है मुक्ति, आप भी जरूर करें

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली: Rinmochan Mangal Stotra Lyircs in Hindi: कर्ज का बोझ इंसान को जीवन भर परेशान करता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो लोग लंबे समय से कर्ज में घिरे हुए हैं, उन्हें ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। मान्यता है कि इस ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का विधिपूर्वक पाठ करने से इंसान को कर्ज की समस्या से छुटकारा पा सकता है। इसके अलावा आर्थिक स्थिति में भी सुधार होता है।

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    ऋण मोचन मंगल स्तोत्र के फायदे

    ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करने से इंसान के दुख खत्म होते हैं और दरिद्रता नष्ट हो जाती है। इसके अलावा कर्ज की समस्या से छुटकारा मिलता है। मानसिक और शारीरिक पीड़ा से राहत मिलती है।

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    आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कर्ज मुक्ति के लिए ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करना बेहद फलदायी होता है। ज्योतिष के अनुसार, यदि आपकी कुंडली में मंगलदोष है तो यह स्तोत्र को करने से दोष से मुक्ति मिल जाती है। ऋणमोचक मंगल स्तोत्र इस प्रकार है-

    ऋणमोचक मंगल स्तोत्र

    मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।

    स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1॥

    लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।

    धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2॥

    अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।

    व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3॥

    एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।

    ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥4॥

    धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।

    कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥5॥

    स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।

    न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥6॥

    अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।

    त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥7॥

    ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।

    भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥ 8 ||

    अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।

    तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥9॥

    विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।

    तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥10॥

    पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।

    ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥11॥

    एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।

    महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥12॥

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    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'