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    Vishwakarma Puja 2023: आज पूजा के समय करें विश्वकर्मा चालीसा का पाठ, करियर और कारोबार को मिलेगा नया आयाम

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 17 Sep 2023 08:54 AM (IST)

    धार्मिक मान्यताएं हैं कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यक्ति को करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है। साथ ही करियर और कारोबार में व्याप्त सभी प्रकार की अड़चनें दूर हो जाती हैं। अगर आप भी भगवान विश्वकर्मा की कृपा-दृष्टि पाना चाहते हैं तो आज पूजा के समय विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करें। आइए विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करें।

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    Vishwakarma Puja 2023: आज पूजा के समय करें विश्वकर्मा चालीसा का पाठ, करियर और कारोबार को मिलेगा नया आयाम

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Vishwakarma Puja 2023: आज विश्वकर्मा पूजा है। यह पर्व हर वर्ष 17 सितंबर को मनाया जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि कन्या संक्रांति के दिन ब्रह्माजी के मानस पुत्र शिल्पकार विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। अतः कन्या संक्रांति तिथि पर शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यताएं हैं कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यक्ति को करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है। साथ ही करियर और कारोबार में व्याप्त सभी प्रकार की अड़चनें दूर हो जाती हैं। अगर आप भी भगवान विश्वकर्मा की कृपा-दृष्टि पाना चाहते हैं, तो आज पूजा के समय विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करें। आइए, विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करें-

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    यह भी पढ़ें-Happy Vishwakarma Puja 2023 Wishes: विश्वकर्मा पूजा के शुभ अवसर पर अपने प्रियजनों को भेजें ये खास संदेश

    विश्वकर्मा चालीसा

    दोहा

    श्री विश्वकर्मा प्रभु वंदना, चरण कमल धरि ध्यान ।

    श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण,दीजै दया निधान ॥

    चौपाई

    जय श्री विश्वकर्मा भगवान ।

    जय विश्वेश्वर कृपा निधाना ॥

    शिल्पाचार्य परम उपकारी ।

    भुवना-पुत्र नाम छविकारी ॥

    अष्टम वसु प्रभास-सुत नागर ।

    शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर ॥

    अद्भुत सकल सृष्टि के कर्ता ।

    सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता ॥

    अतुल तेज तुम्ही तो जग माहीं ।

    कोई विश्व मंह जानत नाही ॥

    विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा ।

    अद्भुत वरण विराज सुवेशा ॥

    एकानन पंचानन राजे ।

    द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे ॥

    चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे ।

    वारि कमण्डल वर कर लीन्हे ॥

    शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा ।

    सोहत सूत्र माप अनुरूपा ॥

    धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे ।

    नौवें हाथ कमल मन मोहे ॥

    दसवां हस्त बरद जग हेतु ।

    अति भव सिंधु मांहि वर सेतु ॥

    सूरज तेज हरण तुम कियऊ ।

    अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ ॥

    चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका ।

    दण्ड पालकी शस्त्र अनेका ॥

    विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं ।

    अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं ॥

    इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा ।

    तुम सबकी पूरण की आशा ॥

    भांति-भांति के अस्त्र रचाए ।

    शतपथ को प्रभु सदा बचाए ॥

    अमृत घट के तुम निर्माता ।

    साधु संत भक्तन सुर त्राता ॥

    लौह काष्ट ताम्र पाषाणा ।

    स्वर्ण शिल्प के परम सजाना ॥

    विद्युत अग्नि पवन भू वारी ।

    इनसे अद्भुत काज सवारी ॥

    खान-पान हित भाजन नाना ।

    भवन विभिषत विविध विधाना ॥

    विविध व्सत हित यत्रं अपारा ।

    विरचेहु तुम समस्त संसारा ॥

    द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका ।

    विविध महा औषधि सविवेका ॥

    शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला ।

    वरुण कुबेर अग्नि यमकाला ॥

    तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ ।

    करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ ॥

    भे आतुर प्रभु लखि सुर-शोका ।

    कियउ काज सब भये अशोका ॥

    अद्भुत रचे यान मनहारी ।

    जल-थल-गगन मांहि-समचारी ॥

    शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही ।

    विज्ञान कह अंतर नाही ॥

    बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा ।

    सकल सृष्टि है तव विस्तारा ॥

    रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा ।

    तुम बिन हरै कौन भव हारी ॥

    मंगल-मूल भगत भय हारी ।

    शोक रहित त्रैलोक विहारी ॥

    चारो युग परताप तुम्हारा ।

    अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा ॥

    ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता ।

    वर विज्ञान वेद के ज्ञाता ॥

    मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा ।

    सबकी नित करतें हैं रक्षा ॥

    पंच पुत्र नित जग हित धर्मा ।

    हवै निष्काम करै निज कर्मा ॥

    प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई ।

    विपदा हरै जगत मंह जोई ॥

    जै जै जै भौवन विश्वकर्मा ।

    करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा ॥

    इक सौ आठ जाप कर जोई ।

    छीजै विपत्ति महासुख होई ॥

    पढाहि जो विश्वकर्मा-चालीसा ।

    होय सिद्ध साक्षी गौरीशा ॥

    विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे ।

    हो प्रसन्न हम बालक तेरे ॥

    मैं हूं सदा उमापति चेरा ।

    सदा करो प्रभु मन मंह डेरा ॥

    ॥ दोहा ॥

    करहु कृपा शंकर सरिस,विश्वकर्मा शिवरूप ।

    श्री शुभदा रचना सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

    डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहे।