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    Shri Radha Krishna Ashtakam: पाना चाहते हैं भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा, तो पूजा के समय जरूर करें ये स्तुति

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Tue, 09 May 2023 06:29 PM (IST)

    Shri Radha Krishna Ashtakam धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा उपासना करने से जातक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। साथ ही श्री राधा रानी की कृपा से घर में सुख और समृद्धि आती है। अतः साधक भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा उपासना करते हैं।

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    Shri Radha Krishna Ashtakam: पाना चाहते हैं भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा, तो पूजा के समय जरूर करें ये स्तुति

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Shri Radha Krishna Ashtakam:  सनातन धर्म के अनुयायी बुधवार के दिन जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन गणेश जी की पूजा करने का भी विधान है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भगवान श्रीकृष्ण अनंत काल से अपनी लीलाओं के जरिए सृष्टि का संचालन कर रहे हैं। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा उपासना करने से जातक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। साथ ही श्री राधा रानी की कृपा से घर में सुख और समृद्धि आती है। अतः साधक बुधवार के दिन भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा उपासना करते हैं। अगर आप भी भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा पाना चाहते हैं, तो पूजा के समय ये स्तुति जरूर करें-

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    श्री राधा कृष्ण अष्टकम

    चथुर मुखाधि संस्थुथं, समास्थ स्थ्वथोनुथं ।

    हलौधधि सयुथं, नमामि रधिकधिपं ॥

    भकाधि दैथ्य कालकं, सगोपगोपिपलकं ।

    मनोहरसि थालकं, नमामि रधिकधिपं ॥

    सुरेन्द्र गर्व बन्जनं, विरिञ्चि मोह बन्जनं ।

    वृजङ्ग ननु रञ्जनं, नमामि रधिकधिपं ॥

    मयूर पिञ्च मण्डनं, गजेन्द्र दण्ड गन्दनं ।

    नृशंस कंस दण्डनं, नमामि रधिकधिपं ॥

    प्रदथ विप्रदरकं, सुधमधम कारकं ।

    सुरद्रुमपःअरकं, नमामि रधिकधिपं ॥

    दानन्जय जयपाहं, महा चमूक्षयवाहं ।

    इथमहव्यधपहम्, नमामि रधिकधिपं ॥

    मुनीन्द्र सप करणं, यदुप्रजप हरिणं ।

    धरभरवत्हरणं, नमामि रधिकधिपं ॥

    सुवृक्ष मूल सयिनं, मृगारि मोक्षधयिनं ।

    श्र्वकीयधमययिनम्, नमामि रधिकधिपं ॥

    श्री राधा कृष्ण स्तोत्र

    वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम् ।

    सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥

    राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।

    राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥

    राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।

    राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥

    राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।

    राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥

    ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् ।

    तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥

    निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।

    नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥

    यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।

    योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥

    बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।

    वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥

    योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।

    गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।

    इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥

    हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् ।

    पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः ॥

    डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।