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    Mahalakshmi Stotra: पैसे की तंगी को करना चाहते हैं दूर, तो शुक्रवार को जरूर करें महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 28 Sep 2023 05:10 PM (IST)

    Mahalakshmi Stotra शास्त्रों में निहित है कि धन की देव स्वभाव से बेहद चंचल हैं। एक जगह पर ज्यादा देर तक नहीं ठहरती है। अतः नियमित रूप से धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-उपासना करनी चाहिए। साथ ही स्वाभाव में विनम्रता और व्यवहार में कुशलता जरूर लाएं। अगर आपकी आर्थिक स्थिति अनुकूल नहीं है तो धन प्राप्ति हेतु शुक्रवार के दिन महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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    Mahalakshmi Stotra: पैसे की तंगी को करना चाहते हैं दूर, तो शुक्रवार को जरूर करें महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Mahalakshmi Stotra: सनातन धर्म में शुक्रवार के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि प्राप्ति हेतु लक्ष्मी वैभव व्रत किया जाता है। इस व्रत को पुरुष और महिलाएं दोनों कर सकते हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से सुख, समृद्धि, धन और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। साथ ही कर्ज संबंधी परेशानी भी दूर होती है। शास्त्रों में निहित है कि धन की देव स्वभाव से बेहद चंचल हैं। एक जगह पर ज्यादा देर तक नहीं ठहरती हैं। अतः नियमित रूप से धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। साथ ही स्वाभाव में विनम्रता और व्यवहार में कुशलता जरूर लाएं। अगर आपकी आर्थिक स्थिति भी अनुकूल नहीं है, तो धन प्राप्ति हेतु शुक्रवार के दिन महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र के पाठ से धन संबंधी परेशानी दूर हो जाती है। आइए, महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अवश्य करें-

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    श्री महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र

    श्रीमत सौभाग्यजननीं, स्तौमि लक्ष्मीं सनातनीं।

    सर्वकामफलावाप्ति साधनैक सुखावहां ।।

    श्री वैकुंठ स्थिते लक्ष्मि, समागच्छ मम अग्रत:।

    नारायणेन सह मां , कृपा दृष्ट्या अवलोकय।।

    सत्यलोक स्थिते लक्ष्मि, त्वं समागच्छ सन्निधिम।

    वासुदेवेन सहिता, प्रसीद वरदा भव।।

    श्वेतद्वीपस्थिते लक्ष्मि, शीघ्रम आगच्छ सुव्रते।

    विष्णुना सहिते देवि, जगन्मात: प्रसीद मे।।

    क्षीराब्धि संस्थिते लक्ष्मि, समागच्छ समाधवे।

    त्वत कृपादृष्टि सुधया , सततं मां विलोकय।।

    रत्नगर्भ स्थिते लक्ष्मि, परिपूर्ण हिरण्यमयि।

    समागच्छ समागच्छ, स्थित्वा सु पुरतो मम।।

    स्थिरा भव महालक्ष्मि, निश्चला भव निर्मले।

    प्रसन्ने कमले देवि, प्रसन्ना वरदा भव।।

    श्रीधरे श्रीमहाभूते, त्वदंतस्य महानिधिम।

    शीघ्रम उद्धृत्य पुरत:, प्रदर्शय समर्पय।।

    वसुंधरे श्री वसुधे, वसु दोग्ध्रे कृपामयि।

    त्वत कुक्षि गतं सर्वस्वं, शीघ्रं मे त्वं प्रदर्शय।।

    विष्णुप्रिये ! रत्नगर्भे ! समस्त फलदे शिवे।

    त्वत गर्भ गत हेमादीन, संप्रदर्शय दर्शय।।

    अत्रोपविश्य लक्ष्मि, त्वं स्थिरा भव हिरण्यमयि।

    सुस्थिरा भव सुप्रीत्या, प्रसन्न वरदा भव।।

    सादरे मस्तकं हस्तं, मम तव कृपया अर्पय।

    सर्वराजगृहे लक्ष्मि, त्वत कलामयि तिष्ठतु।।

    यथा वैकुंठनगरे, यथैव क्षीरसागरे।

    तथा मद भवने तिष्ठ, स्थिरं श्रीविष्णुना सह।।

    आद्यादि महालक्ष्मि, विष्णुवामांक संस्थिते।

    प्रत्यक्षं कुरु मे रुपं , रक्ष मां शरणागतं ।।

    समागच्छ महालक्ष्मि, धन्य धान्य समन्विते।

    प्रसीद पुरत: स्थित्वा, प्रणतं मां विलोकय ।।

    दया सुदृष्टिं कुरुतां मयि श्री:।

    सुवर्णदृष्टिं कुरु मे गृहे श्री:।।

    डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।