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    Shani Amavasya 2021: शनिचरी अमावस्या पर करें शनि स्त्रोत का पाठ, होगा सभी समस्याओं का समाधान

    By Umanath SinghEdited By:
    Updated: Thu, 02 Dec 2021 11:17 AM (IST)

    Shani Amavasya 2021 मार्गशीर्ष महीने की अमावस्या 4 दिसंबर को है। इस बार मार्गशीर्ष अमावस्या शनिवार के दिन है। शनिवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को शनिच ...और पढ़ें

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    Shani Amavasya 2021: शनिचरी अमावस्या पर करें शनि स्त्रोत का पाठ, होगा सभी समस्याओं का समाधान

    Shani Amavasya 2021: सनातन धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा का विशेष महत्व है। हर महीने में कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन अमावस्या और शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा पड़ती है। मार्गशीर्ष महीने की अमावस्या 4 दिसंबर को है। इस बार मार्गशीर्ष अमावस्या शनिवार के दिन है। शनिवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को शनिचरी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन सूर्य ग्रहण भी पड़ने वाला है। ज्योतिषों की मानें तो सूर्य ग्रहण 10 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगा और दोपहर के 3 बजकर 7 मिनट पर समाप्त होगा। भारत के किसी जगह पर सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा। अत: सूतक भी नहीं लगेगा। सनातन धर्म में ग्रहण के समय कोई मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। हालांकि, सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा।

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    इस दिन पूजा, जप-तप और दान करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि शनि अमावस्या के दिन दान करने से व्यक्ति के जीवन से दुःख, संकट, दरिद्रता आदि समस्याओं का निवारण होता है। साथ ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अत: इस दिन लोग पवित्र नदियों और सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाकर पूजा, जप, तप, दान करते हैं। वहीं, जिन जातकों पर साढ़े साती या शादी की ढैया चल रही है। उन्हें शनि स्त्रोत का जाप करना चाहिए। आइए जानते हैं-

    शनि स्त्रोत

    नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।

    नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।

    नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।

    नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

    नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

    नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।

    नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।

    नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

    नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।

    सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।

    अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।

    नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

    तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।

    नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

    ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।

    तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

    देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।

    त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।

    प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।

    एवं स्तुतस्तद सौरिग्रहराजो महाबल:।।

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'