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    Kamika Ekadashi 2023: आज पूजा के समय करें श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ और आरती, आर्थिक तंगी जरूर हो जाएगी दूर

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 13 Jul 2023 10:51 AM (IST)

    Kamika Ekadashi 2023 इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनकी कृपा से साधक के जीवन में व्याप्त सभी दुख दूर संकट यथाशीघ्र दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है। अगर आप भी लक्ष्मी नारायण की कृपा दृष्टि पाना चाहते हैं तो आज श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ और आरती अवश्य करें।

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    Kamika Ekadashi 2023: आज पूजा के समय करें श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ और आरती, आर्थिक तंगी हो जाएगी दूर

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Kamika Ekadashi 2023: सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन एकादशी का व्रत रख विधि विधान से जगत के पालनहार भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनकी कृपा से साधक के जीवन में व्याप्त सभी दुख दूर संकट यथाशीघ्र दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। अगर आप भी लक्ष्मी नारायण की कृपा दृष्टि पाना चाहते हैं, तो आज पूजा के समय श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ और आरती अवश्य करें। धार्मिक मान्यता है कि मां लक्ष्मी की पूजा उपासना करने से धन संबंधी परेशानियां दूर हो जाती हैं। आइए, श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ और आरती करें-

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    श्री लक्ष्मी चालीसा

    सोरठा

    यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।

    सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

    चौपाई

    सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥

    तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

    जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥

    तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥

    जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

    विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥

    केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

    कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥

    ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

    क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

    चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥

    जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

    स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

    तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

    अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

    तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

    मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥

    तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥

    और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥

    ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥

    त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥

    जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

    ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥

    पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

    विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

    पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

    सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

    बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

    प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

    बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

    करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥

    जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥

    तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

    मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

    भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥

    बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

    नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

    रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

    केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥

    दोह

    त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।

    जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥

    रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।

    मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

    लक्ष्मी जी की आरती

    ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

    तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।। ॐ जय लक्ष्मी माता...

    उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जगमाता।

    सूर्य, चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। ॐ जय लक्ष्मी माता...

    दुर्गा रूप निरंजनी, सुख संपत्ति दाता।

    जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता।। ॐ जय लक्ष्मी माता...

    तुम पाताल निवासनी, तुम ही शुभ दाता।

    कर्म प्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता।। ॐ जय लक्ष्मी माता...

    जिस घर में तुम रहतीं,सब सद्गुण आता।

    सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता।। ॐ जय लक्ष्मी माता...

    तुम बिन यज्ञ न होते, वस्तु न कोई पाता।

    खान पान का वैभव सब तुमसे आता।। ॐ जय लक्ष्मी माता...

    शुभ्र गुण मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता।

    रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता।। ॐ जय लक्ष्मी माता...

    महालक्ष्मी जी की आरती जो कोई नर गाता।

    उर आनंद समाता, पाप उतर जाता।।

    लक्ष्मी माता की जय, लक्ष्मी नारायण की जय।

    डिसक्लेमर- 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

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