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    Rath Saptami 2024: रथ सप्तमी पर जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ, कुंडली में मजबूत होगी सूर्य की स्थिति

    Updated: Fri, 16 Feb 2024 08:00 AM (IST)

    ज्योतिष शास्त्र में माना गया है कि यदि कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत हो तो साधक को जीवन में धन-सम्पदा की प्राप्ति हो सकती है। ऐसे में यदि आप रथ सप्तमी या अचला सप्तमी के दिन विशेष विधि-विधान से पूजा करने के बाद इस स्तोत्र का पाठ करने हैं तो इससे आपको जीवन में कई तरह के लाभ देखने को मिल सकते हैं।

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    Rath Saptami 2024 रथ सप्तमी पर जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Rath Saptami 2024 Date: हिंदू धर्म में माना गया है कि प्रतिदिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति पर सूर्य देव की कृपा बनी रहती है। जिससे व्यक्ति को सुख-समृद्धि के साथ-साथ करियर में भी तरक्की भी प्राप्त होती है। प्रत्येक वर्ष माघ माह में शुक्ल पक्ष सप्तमी को रथ सप्तमी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि पर सूर्य देव की पहली किरण पृथ्वी पर पड़ी थी। ऐसे में आइए जानते हैं कि आप इस तिथि पर किन कार्यों द्वारा सूर्य देव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

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    इस तरह करें पूजा

    रथ सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं। इसके बाद सूर्य देव को जल में लाल फूल मिलाकर अर्घ्य दें और गाय के घी का दीपक जलाएं। साथ ही इस दिन सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ भी जरूर करें। ऐसा करने से आपको अपने जीवन में सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

    आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra)

    आदित्य हृदय स्तोत्र विनियोग

    ओम अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।

    पूर्व पिठित

    ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌। रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌।

    दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌। उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा।।

    राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌। येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे।।

    आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌। जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌।।

    सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌। चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌।।

    मूल -स्तोत्र

    रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌। पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌।।

    सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन:। एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि:।।

    एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति:। महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः।।

    पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु:। वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर:।

    आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌। सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर:।।

    हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌। तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌।।

    हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि:। अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन:।।

    व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग:। घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।।

    आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव:।

    नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन:। तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते।।

    नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम:। ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम:।।

    जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम:। नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम:।।

    नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम:। नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।

    ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे। भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम:।।

    तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने। कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम:।।

    तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे। नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।।

    नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु:। पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि:।

    एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित:। एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌।।

    देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च। यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु:।।

    एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च। कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव।।

    पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌। एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि।।

    अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि। एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌।।

    एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा। धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌।।

    आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌। त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌।।

    रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌। सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌।।

    अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण:।

    निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'