Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत की पूजा में करें इस स्तोत्र का पाठ, सभी पापों से मिलेगी मुक्ति, जीवन होगा सुखमय
धार्मिक मान्यता के अनुसार कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर शिव जी की पूजा करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है और इंसान के रुके हुए कार्य पूरे होते हैं। पूजा के दौरान शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करना बेहद शुभ माना गया है। इससे दांपत्य जीवन में खुशियों का आगमन होता है। चलिए पढ़ते हैं शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shiv Rudrashtakam Ke Fayde: देवों के देव महादेव को त्रयोदशी तिथि समर्पित है। हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही शुभ फल की प्राप्ति के लिए व्रत किया जाता है। इसके अलावा फल और मिठाई समेत आदि चीजों का भोग लगाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से जातक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन सदैव खुशहाल रहता है। प्रदोष व्रत के दिन शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए।
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शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र (Rudrashtakam Stotram Lyrics in Hindi)
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ।।1।।
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं ।
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।।
करालं महाकालकालं कृपालं ।
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ।।2।।
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं ।
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा ।
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।3।।
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं ।
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ।।4।।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ।
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।।
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं ।
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।5।।
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी ।
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी ।
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।6।।
न यावद् उमानाथपादारविन्दं ।
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ।
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ।।7।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां ।
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं ।
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ।।8।।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।9।।
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