Pradosh Vrat 2024: इस स्तोत्र के पाठ से मिलेगा मनचाहा करियर, महादेव की बरसेगी कृपा
भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रदोष व्रत को अधिक शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2024) के दिन शुभ मुहूर्त में सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से जातक को आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है और प्रभु प्रसन्न होते हैं। साथ ही इस दिन श्रद्धा अनुसार गरीब लोगों में दान जरूर करना चाहिए।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत करने का विधान है। पंचांग के अनुसार, आश्विन माह में प्रदोष व्रत 29 सितंबर (Pradosh Vrat 2024 Date) को किया जाएगा। इस दिन महादेव की पूजा-अर्चना संध्याकाल में की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से जातक के विवाह में आ रही रुकावट दूर होती है। साथ ही शुभ फल की प्राप्ति होती है। ऐसे में आप प्रदोष व्रत के दिन शिव द्वादशज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्र का पाठ जरूर करें। माना जाता है कि इसका पाठ करने से जातक को मनचाहा करियर मिलता है और सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। आइए पढते हैं शिव द्वादशज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्र।
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 29 सितंबर शाम 04 बजकर 47 मिनट से होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 30 सितंबर शाम 07 बजकर 06 मिनट पर होगा। ऐसे में प्रदोष व्रत 29 सितंबर को किया जाएगा। इस दिन रविवार होने की वजह से यह रवि प्रदोष व्रत कहलाएगा।
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॥ शिव द्वादशज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्र ॥
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्येज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णतं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गेतुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकंनमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥
अवन्तिकायां विहितावतारंमुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थंवन्दे महाकालमहासुरेशम्॥
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रेसमागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे॥
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधानेसदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मंश्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि॥
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्येविभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकंश्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये॥
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तंसम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यैःकेदारमीशं शिवमेकमीडे॥
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तंगोदावरीतीरपवित्रदेशे।
यद्दर्शनात्पातकमाशु नाशंप्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीड॥
सुताम्रपर्णीजलराशियोगेनिबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तंरामेश्वराख्यं नियतं नमामि॥
यं डाकिनीशाकिनिकासमाजेनिषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धंतं शङ्करं भक्तहितं नमामि॥
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथंश्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरस्वभावंयरघृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये॥
ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानांशिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्याफलं तदालोक्य निजं भजेच्च॥
॥ इति श्रीद्वादशज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रम् सम्पूर्णम्। ॥
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