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    Aarti Kunj Bihari Ki: प्रातःकाल पूजा के समय करें कुंजबिहारी जी की आरती, सभी संकटों से शीघ्र मिलेगी मुक्ति

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 27 Jul 2023 07:00 AM (IST)

    Aarti Kunj Bihari Ki वास्तु शास्त्र के जानकारों की मानें तो आरती करने से घर में व्याप्त सभी प्रकार के वास्तु दोष दूर हो जाते हैं। साथ ही सुख समृद्धि और धन में वृद्धि होती है। अगर आप भी भगवान कृष्ण की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो प्रतिदिन प्रातःकाल में पूजा के समय कुंजबिहारी जी की आरती करें।

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    Aarti Kunj Bihari Ki: प्रातःकाल पूजा के समय करें कुंजबिहारी जी की आरती, सभी संकटों से शीघ्र मिलेगी मुक्ति

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Aarti Kunj Bihari Ki: सनातन धर्म में ईश्वर प्राप्ति के लिए भक्ति का विधान है। साधक भक्ति कर ईश्वर को प्रसन्न करते हैं। उनकी कृपा से साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। प्रत्येक पूजा के अंत में आरती की जाती है। इस समय शंख, घंटी, ढोलक, करताल बजाए जाते हैं। इससे वातावरण भक्तिमय हो जाता है। वास्तु शास्त्र के जानकारों की मानें तो आरती करने से घर में व्याप्त वास्तु दोष दूर हो जाता है। साथ ही सुख, समृद्धि और धन में वृद्धि होती है। अगर आप भी भगवान कृष्ण की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो प्रतिदिन प्रातःकाल में पूजा के समय कुंजबिहारी जी की आरती करें। आइए, कुंज बिहारी की आरती करें-

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    आरती कुंजबिहारी की

    आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

    गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।

    श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।

    आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।

    लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,

    ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।

    आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।

    गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;

    अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

    आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।

    स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;

    चरन छवि श्री बनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

    आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।

    चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद।।

    टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'