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Parivartini Ekadashi 2021 Katha: आज परिवतर्नी एकादशी पर अवश्य सुनें यह व्रत कथा, मिलेगा पुण्य और संपूर्ण फल

Parivartini Ekadashi 2021 Katha भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी परिवतर्नी एकादशी आज 17 सितंबर दिन शुक्रवार को है। इसे वामन एकादशी भी कहा जाता है। पूजा के समय परिवतर्नी एकादशी व्रत की कथा सुनते हैं। आइए जानते हैं परिवतर्नी एकादशी की व्रत कथा के बारे में।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 10:34 AM (IST)Updated: Fri, 17 Sep 2021 11:04 AM (IST)
Parivartini Ekadashi 2021 Katha: आज परिवतर्नी एकादशी पर अवश्य सुनें यह व्रत कथा, मिलेगा पुण्य और संपूर्ण फल
Parivartini Ekadashi 2021 Katha: आज परिवतर्नी एकादशी पर अवश्य सुनें यह व्रत कथा, मिलेगा पुण्य और संपूर्ण फल

Parivartini Ekadashi 2021 Katha: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी परिवतर्नी एकादशी आज 17 सितंबर दिन शुक्रवार को है। इसे वामन एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की आराधना की जाती है। भाद्रपद शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु योग निद्रा में करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवतर्नी एकादशी कहा जाता है। भगवान विष्णु के योग निद्रा का काल चार माह का होता है, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। इस समय चातुर्मास चल रहा है। परिवतर्नी एकादशी के दिन व्रत रखने के साथ भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। फिर पूजा के समय परिवतर्नी एकादशी व्रत की कथा सुनते हैं। व्रत कथा के श्रवण से व्रत पूर्ण होता है और उसका पूरा पुण्य एवं फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं परिवतर्नी एकादशी की व्रत कथा के बारे में।

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परिवतर्नी एकादशी व्रत कथा

एक बार युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण से परिवतर्नी एकादशी व्रत के बारे में जानने की इच्छा हुई। तब श्रीकृष्ण ने उनको परिवतर्नी एकादशी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि त्रेतायुग में दैत्यराज बलि भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। उसके पराक्रम से इंद्र और देवतागण भयभीत थे। इंद्रलोक पर उसका कब्जा था। उसके भय के डर से सभी देव भगवान विष्णु के पास गए।

इंद्र समेत सभी देवताओं ने दैत्यराज बलि के भय से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने अपना वामन अवतार धारण किया। उसके बाद वे दैत्यराज ब​लि के पास गए और उससे तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि देने का वचन दिया।

तब वामन देव ने अपना विकराल स्वरुप धारण किया। उसके बाद एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में धरती नाप दी। फिर उन्होंने बलि से कहा कि वे अपना तीसरा पग कहां रखें। तब उसने कहा कि हे प्रभु! तीसरा पग आप उसके मस्तक पर रख दें। यह कहकर उसने अपना शीश प्रभु के सामने झुका दिया।

इसके बाद प्रभु वामन ने अपना तीसरा पग उसके सिर पर रखा। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पाताल लोक भेज दिया। इस प्रकार से भगवान विष्णु के वामन अवतार की उद्देश्य पूर्ण हुआ और देवताओं को बलि के भय एवं आतंक से मुक्ति मिली।

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि जो लोग परिवतर्नी एकादशी का व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनको समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

डिस्क्लेमर

''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''


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