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Nag Panchami 2019: कालसर्प दोष की शान्ति के लिए उत्तम है नाग पंचमी, जानें पूजा का मुहूर्त

Nag Panchami 2019 इस वर्ष नाग पंचमी उत्तराफाल्गुनी तदुपरि हस्त नक्षत्र के दुर्लभ योग में पड़ रहा है। इस योग में कालसर्प-योग की शान्ति हेतु पूजन का विशेष महत्व है।

By kartikey.tiwariEdited By: Published: Fri, 02 Aug 2019 12:15 PM (IST)Updated: Sun, 04 Aug 2019 07:30 AM (IST)
Nag Panchami 2019: कालसर्प दोष की शान्ति के लिए उत्तम है नाग पंचमी, जानें पूजा का मुहूर्त
Nag Panchami 2019: कालसर्प दोष की शान्ति के लिए उत्तम है नाग पंचमी, जानें पूजा का मुहूर्त

Nag Panchami 2019: श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह पर्व 05 अगस्त दिन सोमवार को उत्तराफाल्गुनी तदुपरि हस्त नक्षत्र के दुर्लभ योग में पड़ रहा है। इस योग में कालसर्प-योग की शान्ति हेतु पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों में वर्णित है। नागों को अपने जटाजूट तथा गले में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को काल का देवता कहा गया है।

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पूजा का शुभ मुहूर्त

सुबह 06:22 से 10:49 पूर्वाह्न तक। सर्वार्थ योग।

नांग पंचमी पूजा विधि

नागों को अपने जटाजूट तथा गले में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को काल का देवता कहा गया है। इस दिन गृह-द्वार के दोनों तरफ गाय के गोबर से सर्पाकृति बनाकर अथवा सर्प का चित्र लगाकर उन्हें घी, दूध, जल अर्पित करना चाहिए। इसके पश्चात दही, दूर्वा, धूप, दीप एवं नीलकंठी, बेलपत्र और मदार-धतूरा के पुष्प से विधिवत पूजन करें। फिर नागदेव को धान का लावा, गेहूँ और दूध का भोग लगाना चाहिए।

पूजन-मन्त्र

अगस्तश्च् पुलसतश्च् सर्वनागमेव च मम कुले रक्षाय नाग देवाय नमो नम:।।

पूजा का महत्व

नाग-पूजन से पद्म-तक्षक जैसे नागगण संतुष्ट होते हैं तथा पूजन कर्ता को सात कुल (वंश) तक नाग-भय नहीं होता। नाग पूजा से सांसारिक दुःखों से मुक्ति तथा विद्या, बुद्धि, बल एवं चातुर्य की प्राप्ति होती है। सर्प-दंश का भय तो समाप्त होता ही है, साथ ही जन्म-कुंडली में स्थित “कालसर्प योग” की शान्ति भी होती है।

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इस वजह से मनाते हैं नाग पंचमी

एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि शापित महाराज परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग जाति को समाप्त करने के संकल्प से नाग-यज्ञ किया, जिससे सभी जाति-प्रजाति के नाग भस्म होने लगे; किन्तु अत्यन्त अनुनय-विनय के कारण पद्म एवं तक्षक नामक नाग देवों को ऋषि अगस्त से अभयदान प्राप्त हो गया।

अभयदान प्राप्त दोनों नागों से ऋषि ने यह वचन लिया कि श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जो भू-लोकवासी नाग का पूजन करेंगे, हे पद्म-तक्षक! तुम्हारे वंश में उत्पन्न कोई भी नाग उन्हें आघात नहीं करेगा। तब से इस पर्व की परम्परा प्रारम्भ हुई, जो वर्तमान तक अनवरत चले आ रहे इस पर्व को नाग पंचमी के नाम से ख्याति मिली।

— ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट

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