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    Masik Durgashtami पर जरूर करें सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ, हर कष्ट होगा दूर

    Updated: Tue, 25 Nov 2025 05:31 PM (IST)

    मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत हर महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर किया जाता है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से शुभ फल मिलते हैं। इस दिन विशेष रूप से देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् के पाठ से आपको शुभ परिणाम मिल सकते हैं।

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    Masik Durgashtami 2025 सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् का पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मार्गशीर्ष माह की मासिक दुर्गाष्टमी (Masik Durgashtami Vrat 2025) 28 नवंबर को मनाई जाएगी है। इस दिन साधक मां दुर्गा के निमित्त व्रत करते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। इससे परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन शुभ परिणाम के लिए आप पूजा के दौरान सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।

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    ॥ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥ (Siddha Kunjika Stotram)

    शिव उवाच

    शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।

    येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत्॥1॥

    न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।

    न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥

    कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।

    अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥

    गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

    मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।

    पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥

    Durga Goddess I

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    ॥ अथ मन्त्रः ॥

    ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे॥

    ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

    ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥

    ॥ इति मन्त्रः ॥

    नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

    नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥

    नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।

    जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे॥2॥

    ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।

    क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥3॥

    चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।

    विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥4॥

    धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।

    क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥5॥

    हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

    भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥6॥

    अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।

    धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥7॥

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    पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।

    सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥8॥

    इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।

    अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥

    यस्तु कुञ्जिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।

    न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

    ॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

    ॥ ॐ तत्सत् ॥

    करें इन मंत्रों का जप

    1. मंत्र: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:

    2. मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:

    3. सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

    3. ध्यान मंत्र -

    ॐ जटा जूट समायुक्तमर्धेंन्दु कृत लक्षणाम|
    लोचनत्रय संयुक्तां पद्मेन्दुसद्यशाननाम॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।