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    Mangalwar ke Upay: हनुमान जी की पूजा में करें इस स्तोत्र का पाठ, धन प्राप्ति के खुलेंगे मार्ग

    Updated: Tue, 03 Dec 2024 09:12 AM (IST)

    सनातन शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ माह के प्रथम मंगलवार (Mangalwar ke Upay) को भगवान श्रीराम और हनुमान जी की भेंट हुई थी। इसी वजह से मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि उपासना करने से जीवन में कभी धन का अभाव नहीं रहता है और जातक को रुके हुए काम में सफलता प्राप्त होती है।

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    Mangalwar ke Upay: हनुमान जी की पूजा में करें इस स्तोत्र का पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Mangalwar ke Upay: सनातन धर्म में मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित है। इस शुभ दिन पर बजरंगबली की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही जीवन के संकट को दूर करने के लिए व्रत भी किया जाता है। अगर आप हनुमान जी को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो मंगलवार के दिन हनुमान स्तोत्र का पाठ करें। साथ ही हनुमान जी को बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। मान्यता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से धन प्राप्ति के मार्ग खुलते हैं और कर्ज से छुटकारा मिलता है।

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    ''श्री हनुमान स्तोत्र''

    ''वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥

    सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं। वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न॥

    भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।

    सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥१॥

    सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।

    इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥

    सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।

    कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम्॥३॥

    सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।

    प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥४॥

    प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।

    विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्॥५॥

    नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।

    सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्॥६॥

    रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।

    विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्॥७॥

    नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः।

    सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्॥८॥

    इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।

    प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह॥९॥

    नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे। लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥

    ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्''॥

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    ''भगवान हनुमान की कल्याणकारी स्तुति''

    ''जय बजरंगी जय हनुमाना,

    रुद्र रूप जय जय बलवाना,

    पवनसुत जय राम दुलारे,

    संकट मोचन सिय मातु के प्यारे ॥

    जय वज्रकाय जय राम केरू दासा,

    हृदय करतु सियाराम निवासा,

    न जानहु नाथ तोहे कस गोहराई,

    राम भक्त तोहे राम दुहाई ॥

    विनती सुनहु लाज रखहु हमारी,

    काज कौन जो तुम पर भारी,

    अष्टसिद्धि नवनिधि केरू भूपा,

    बखानहु कस विशाल अति रूपा ॥

    धर्म रक्षक जय भक्त हितकारी,

    सुन लीजे अब अरज हमारी,

    भूत प्रेत हरहु नाथ बाधा,

    सन्तापहि अब लाघहु साधा ॥

    मान मोर अब हाथ तुम्हारे,

    करहु कृपा अंजनी के प्यारे,

    बन्दतु सौरभ दास सुनहु पुकारी,

    मंगल करहु हे मंगलकारी'' ॥

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