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    Lord Shiva 108 Names: बिगड़ते काम को भी बना देंगे भगवान शिव के ये 108 नाम, रोजाना ऐसे करें जाप

    By Shivani SinghEdited By:
    Updated: Wed, 23 Nov 2022 02:58 PM (IST)

    Lord Shiva 108 Names शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि भगवान शिव की विधिवत पूजा करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भगवान शिव के इन 108 नामों का नियमित रूप से जाप करने से रोग भय और दोष से छुटकारा मिल जाता है।

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    Lord Shiva 108 Names बिगड़ते काम को भी बना देंगे भगवान शिव के ये 108 नाम

    नई दिल्ली, Lord Shiva 108 Names Jaap: भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है। भगवान शिव एक ऐसे देव हैं जिनकी पूजा विधिवत तरीके से की जाए तो वह बहुत ही जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव को स्वयंभू भी कहा जाता है जिसका अर्थ है कि वह मानव शरीर से पैदा नहीं हुए हैं। जब कोई नहीं था तब भगवान शिव थे। इसलिए हर चीज नष्ट होने जाने बाद भी वह अस्तित्व में रहेंगे। इसी कारण उन्हें आदिदेव कहा जाता है। भगवान शिव की नियमित रूप से पूजा करने के साथ चालीसा, मंत्रों का जाप करने के साथ-साथ इन 108 नामों का जाप करना चाहिए। माना जाता है कि शिव जी के इन नामों का जाप करने से हर तरह के कष्टों से छुटकारा मिल जाता है और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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    कैसे हुए शिव जी के 108 नामों की उत्पत्ति

    भगवान शिव के नामों की उत्पत्ति के विषय में एक कथा प्रचलित है। इस पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में थे जब उनकी नाभि से एक कमलयुक्त परमपिता ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। इसके बाद कई वर्षों तक ब्रह्मा जी विष्णु जी के जागने की प्रतीक्षा करने लगे। एक दिन भगवान शिव अग्निमय ज्योतिर्लिंग के रूप में परमपिता के साथ प्रकट हुए तो ब्रह्मा जी ने उन्हें नमस्कार नहीं किया। लेकिन तभी भगवान विष्णु जाग गए हैं और उन्हें प्रणाम किया। तब परमपिता को भगवान शिव के प्रताप से अवगत हुए। इसके बाद उन्होंने अपनी भूल मानी और शिव जी से क्षमा मांगी। इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें सृष्टि के रचना का कार्यभार दिया और विष्णु जी को संसार के संचार करने को कहा। इस बात पर भगवान विष्णु ने कहा कि सृष्टि का नाश भी जरूरी है। तब भगवान शिव से खुद के ऊपर ये कार्यभार लेने का निर्णय लिया। ऐसे में भगवान ब्रह्मा ने शिवजी से कहा कि सृष्टि के आरंभ के पूर्व ही वह उन्हीं से उत्पन्न हो।

    इस वार्तालाप के बाद ब्रह्मा और विष्णु जी तप में लीन हो गए। तप करने के बाद ब्रह्मदेव सृष्टि की रचना का संकल्प लिया। तभी वरदान के अनुसार उनके शरीर से भगवान शिव बालक के रूप में उत्पन्न हुए। जन्म लेते ही वह खूब जोर से रोने लगे। इस पर ब्रह्मा जी ने उनसे पूछा कि आखिर वह क्यों रो रहे हैं? तब बाल स्वरूप भगवान शिव ने कहा कि उनका कोई नाम नहीं है। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें 'रुद्र' नाम दिया। लेकिन उनका रोना फिर भी नहीं रुका। तब ब्रह्मदेव ने उन्हें शर्व, भव, उग्र, पशुपति,ईशान और महादेव नाम दिया। लेकिन फिर भी बालक का रुदन नहीं रुका। इसके बाद ब्रह्मदेव ने 108 नामों से उनकी स्तुति की तब जाकर वह शांत हुए। तब से ये 108 नाम सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।

    भगवान शिव के है 1008 नाम

    भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लंकापति रावण ने शिव स्त्रोत तांडव की उत्पत्ति की थी।इस स्त्रोत में पूरे 1008 नाम थे।

    भगवान शिव के 108 नाम और मंत्र

    1. रुद्र: ऊं रुद्राय नमः।
    2. शर्व: ऊं शर्वाय नमः।
    3. भव: ऊं भवाय नमः।
    4. उग्र: ऊं उग्राय नमः।
    5. भीम: ऊं भीमाय नमः।
    6. पशुपति: ऊं पशुपतये नमः।
    7. ईशान: ऊं ईशानाय नमः।
    8. महादेव: ऊं महादेवाय नमः।
    9. शिव: ऊं शिवाय नमः।
    10. महेश्वर: ऊं महेश्वराय नमः।
    11. शम्भू: ऊं शंभवे नमः।
    12. पिनाकि: ऊं पिनाकिने नमः।
    13. शशिशेखर: ऊं शशिशेखराय नमः।
    14. वामदेव: ऊं वामदेवाय नमः।
    15. विरूपाक्ष: ऊं विरूपाक्षाय नमः।
    16. कपर्दी: ऊं कपर्दिने नमः।
    17. नीललोहित: ऊं नीललोहिताय नमः।
    18. शंकर: ऊं शंकराय नमः।
    19. शूलपाणि: ऊं शूलपाणये नमः।
    20. खटवांगी: ऊं खट्वांगिने नमः।
    21. विष्णुवल्लभ: ऊं विष्णुवल्लभाय नमः।
    22. शिपिविष्ट: ऊं शिपिविष्टाय नमः।
    23. अंबिकानाथ: ऊं अंबिकानाथाय नमः।
    24. श्रीकण्ठ: ऊं श्रीकण्ठाय नमः।
    25. भक्तवत्सल: ऊं भक्तवत्सलाय नमः।
    26. त्रिलोकेश: ऊं त्रिलोकेशाय नमः।
    27. शितिकण्ठ: ऊं शितिकण्ठाय नमः।
    28. शिवाप्रिय: ऊं शिवा प्रियाय नमः।
    29. कपाली: ऊं कपालिने नमः।
    30. कामारी: ऊं कामारये नमः।
    31. अंधकारसुरसूदन: ऊं अन्धकासुरसूदनाय नमः।
    32. गंगाधर: ऊं गंगाधराय नमः।
    33. ललाटाक्ष: ऊं ललाटाक्षाय नमः।
    34. कालकाल: ऊं कालकालाय नमः।
    35. कृपानिधि: ऊं कृपानिधये नमः।
    36. परशुहस्त: ऊं परशुहस्ताय नमः।
    37. मृगपाणि: ऊं मृगपाणये नमः।
    38. जटाधर: ऊं जटाधराय नमः।
    39. कैलाशी: ऊं कैलाशवासिने नमः।
    40. कवची: ऊं कवचिने नमः।
    41. कठोर: ऊं कठोराय नमः।
    42. त्रिपुरान्तक: ऊं त्रिपुरान्तकाय नमः।
    43. वृषांक: ऊं वृषांकाय नमः।
    44. वृषभारूढ़: ऊं वृषभारूढाय नमः।
    45. भस्मोद्धूलितविग्रह: ऊं भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमः।
    46. सामप्रिय: ऊं सामप्रियाय नमः।
    47. स्वरमयी: ऊं स्वरमयाय नमः।
    48. त्रयीमूर्ति: ऊं त्रयीमूर्तये नमः।
    49. अनीश्वर: ऊं अनीश्वराय नमः।
    50. सर्वज्ञ: ऊं सर्वज्ञाय नमः।
    51. परमात्मा: ऊं परमात्मने नमः।
    52. सोमसूर्याग्निलोचन: ऊं सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः।
    53. हवि: ऊं हविषे नमः।
    54. यज्ञमय: ऊं यज्ञमयाय नमः।
    55. सोम: ऊं सोमाय नमः।
    56. पंचवक्त्र: ऊं पंचवक्त्राय नमः।
    57. सदाशिव: ऊं सदाशिवाय नमः।
    58. विश्वेश्वर: ऊं विश्वेश्वराय नमः।
    59. वीरभद्र: ऊं वीरभद्राय नमः।
    60. गणनाथ: ऊं गणनाथाय नमः।
    61. प्रजापति: ऊं प्रजापतये नमः।
    62. हिरण्यरेता: ऊं हिरण्यरेतसे नमः।
    63. दुर्धर्ष: ऊं दुर्धर्षाय नमः।
    64. गिरीश: ऊं गिरीशाय नमः।
    65. अनघ: ऊं अनघाय नमः।
    66. भुजंगभूषण: ऊं भुजंगभूषणाय नमः।
    67. भर्ग: ऊं भर्गाय नमः।
    68. गिरिधन्वा: ऊं गिरिधन्वने नमः।
    69. गिरिप्रिय: ऊं गिरिप्रियाय नमः।
    70. कृत्तिवासा: ऊं कृत्तिवाससे नमः।
    71. पुराराति: ऊं पुरारातये नमः।
    72. भगवान्: ऊं भगवते नमः।
    73. प्रमथाधिप: ऊं प्रमथाधिपाय नमः।
    74. मृत्युंजय: ऊं मृत्युंजयाय नमः।
    75. सूक्ष्मतनु: ऊं सूक्ष्मतनवे नमः।
    76. जगद्व्यापी: ऊं जगद्व्यापिने नमः।
    77. जगद्गुरू: ऊं जगद्गुरुवे नमः।
    78. व्योमकेश: ऊं व्योमकेशाय नमः।
    79. महासेनजनक: ऊं महासेनजनकाय नमः।
    80. चारुविक्रम: ऊं चारुविक्रमाय नमः।
    81. भूतपति: ऊं भूतपतये नमः।
    82. स्थाणु: ऊं स्थाणवे नमः।
    83. अहिर्बुध्न्य: ऊं अहिर्बुध्न्याय नमः।
    84. दिगम्बर: ऊं दिगंबराय नमः।
    85. अष्टमूर्ति: ऊं अष्टमूर्तये नमः।
    86. अनेकात्मा: ऊं अनेकात्मने नमः।
    87. सात्विक: ऊं सात्विकाय नमः।
    88. शुद्धविग्रह: ऊं शुद्धविग्रहाय नमः।
    89. शाश्वत: ऊं शाश्वताय नमः।
    90. खण्डपरशु: ऊं खण्डपरशवे नमः।
    91. अज: ऊं अजाय नमः।
    92. पाशविमोचन: ऊं पाशविमोचकाय नमः।
    93. मृड: ऊं मृडाय नमः।
    94. देव: ऊं देवाय नमः।
    95. अव्यय: ऊं अव्ययाय नमः।
    96. हरि: ऊं हरये नमः।
    97. भगनेत्रभिद्: ऊं भगनेत्रभिदे नमः।
    98. अव्यक्त: ऊं अव्यक्ताय नमः।
    99. दक्षाध्वरहर: ऊं दक्षाध्वरहराय नमः।
    100. हर: ऊं हराय नमः।
    101. पूषदन्तभित्: ऊं पूषदन्तभिदे नमः।
    102. अव्यग्र: ऊं अव्यग्राय नमः।
    103. सहस्राक्ष: ऊं सहस्राक्षाय नमः।
    104. सहस्रपाद: ऊं सहस्रपदे नमः।
    105. अपवर्गप्रद: ऊं अपवर्गप्रदाय नमः।
    106. अनन्त: ऊं अनन्ताय नमः।
    107. तारक: ऊं तारकाय नमः।
    108. परमेश्वर: ऊं परमेश्वराय नमः।

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