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    Krishna Ji ki Aarti: भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से नहीं होती किसी चीज की कमी, इस तरह करें पूजा

    भगवान श्रीकृष्ण प्रभु श्री हरि के 8वें अवतार माने गए हैं। उनका जन्म माता देवकी के गर्भ से हुआ था। भगवान श्री कृष्ण को गिरधारी देवकीनंदन मुरलीधर आदि कई नामों से जाना जाता है। माना जाता है कि जिस भी साधक पर भगवान कृष्ण की कृपा बनी रहती है उसे जीवन में सुख समृद्धि भी बनी रहती है। तो चलिए जानते हैं कृ्ष्ण जी की कृपा प्राप्ति के उपाय।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Fri, 14 Jun 2024 07:30 AM (IST)
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    Krishna Ji ki Aarti पढ़ें भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विधि और आरती।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Lord Krishna Puja vidhi: भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण पूजनीय माने गए हैं। कई भक्त रोजाना भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, इससे घर-परिवार में सुख-समृद्धि का माहौल बना रहता है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं कृष्ण जी की पूजा विधि और आरती।  

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    श्रीकृष्ण पूजा विधि

    सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं। इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहनें। मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद दीप प्रज्वलित करें। इसके बाद कृष्ण जी का जलाभिषेक करें। भोग में उन्हें माखन-मिश्री अर्पित करें। यदि आप आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके श्रीकृष्ण भगवान की पूजा करते हैं, तो इससे शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है।

    श्रीकृष्ण जी की आरती (Krishna Ji ki Aarti)

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    गले में बैजंती माला,

    बजावै मुरली मधुर बाला ।

    श्रवण में कुण्डल झलकाला,

    नंद के आनंद नंदलाला ।

    गगन सम अंग कांति काली,

    राधिका चमक रही आली ।

    लतन में ठाढ़े बनमाली

    भ्रमर सी अलक,

    कस्तूरी तिलक,

    चंद्र सी झलक,

    ललित छवि श्यामा प्यारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    कनकमय मोर मुकुट बिलसै,

    देवता दरसन को तरसैं ।

    गगन सों सुमन रासि बरसै ।

    बजे मुरचंग,

    मधुर मिरदंग,

    ग्वालिन संग,

    अतुल रति गोप कुमारी की,

    श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    जहां ते प्रकट भई गंगा,

    सकल मन हारिणि श्री गंगा ।

    स्मरन ते होत मोह भंगा

    बसी शिव सीस,

    जटा के बीच,

    हरै अघ कीच,

    चरन छवि श्री बनवारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    चमकती उज्ज्वल तट रेनू,

    बज रही वृंदावन बेनू ।

    चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

    हंसत मृदु मंद,

    चांदनी चंद,

    कटत भव फंद,

    टेर सुन दीन दुखारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।