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श्री अन्नपूर्णा षष्ठी का व्रत कर पायें धन धन्‍य और सुखी परिवार का अाशीर्वाद

जगत का पालन करने वाली देवी का रूप हैं मां अन्‍नपूर्णा, 24 नवंबर को उनका पूजन और व्रत करके सुख संपत्‍ति का वरदान पायें।

By Molly SethEdited By: Updated: Fri, 24 Nov 2017 08:06 AM (IST)
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श्री अन्नपूर्णा षष्ठी का व्रत कर पायें धन धन्‍य और सुखी परिवार का अाशीर्वाद

क्‍या है श्री अन्नपूर्णा की पूजा का महत्‍व

मान्‍यता है कि जगत शिव और शक्ति का स्वरूप है जहां शिव विश्वेश्वर हैं और उनकी शक्ति मां पार्वती हैं। सृष्टि की रचना काल में पार्वती को ‘माया’ कहा जाता है और पालन के समय वही ‘अन्नपूर्णा’ नाम के नाम से जानी हैं, जबकि संहार काल में वे ‘कालरात्रि’ बन जाती हैं। पं. विजय त्रिपाठी ‘विजय’ के अनुसार पालन करने वाली अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन दैहिक, दैविक, भौतिक सुख प्रदान करता है। अतः अन्न-धन, ऐश्वर्य, आरोग्य एवं संतान की कामना करने वाले स्त्री-पुरूषों को अन्नपूर्णा माँ का व्रत-पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए।

मिलता है शुभ फल 

हर साल एक बार मार्गशीर्ष (अगहन) मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को श्री अन्नपूर्णा षष्ठी का पूजा और व्रत किया जाता है, 2017 में अवसर यह 24 नवम्बर को पड़ रहा है। हालांकि यह व्रत अगहन मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से प्रारम्भ होकर शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि तक 16 दिन चलता है, लेकिन जिनके ऐसा करना संभव ना हो वे एक दिन में इसका संपूर्ण लाभ पा सकते हैं। सबसे पहले स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजन की सामग्री रख कर रेशमी अथवा साधारण सूत का डोरा लेकर उसमें 17 गांठ लगायें। अब लाल कुसुम, चंदनादि से पूजन कर डोरे को अन्नपूर्णा माता के चित्र या मूर्ति के सामने रख कर मां भगवती अन्नपूर्णा की प्रार्थना करें। प्रार्थना के बाद पुरूष दाहिने हाथ तथा स्त्री बायें हाथ की कलाई में डोरे को धारण कर कथा को सुनें। ध्‍यान रहे कथा निराहार रह कर ही कहें और सुनें। ऐसा करने से पुत्र, यश, वैभव, लक्ष्मी, धन-धान्य, वाहन, आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्‍ति होती है। 

पूजन सामग्री, महूर्त और पूजन विधि

अन्नपूर्णा षष्‍ठी की पूजा के लिए धूप, दीप, लाल फूल, रोली, हरे धान के चावल, अन्नपूर्णा देवी का चित्र या मूर्ती, रेशमी या साधारण सूत का डोरा, पीपल का पत्ता, सुपारी या ग्वारपाठा, तुलसी का पौधा, धान की बाल का कल्पवृक्ष, अन्न से भरा हुआ पात्र, करछुल, 17 पात्रों में बिना नमक के पकवान और गुड़हल या गुलाब जैसे पुष्‍पों की आवश्‍यकता होती है। यह पूजा शाम सूर्यास्त के बाद होती है, इस वर्ष यह शाम को पांच बजकर आठ मिनट से प्रारम्भ होगी। सारी सामग्री एकत्रित करके सफेद वस्त्र धारण कर पूजागृह में धान की बाली का कल्पवृक्ष बनायें और उसके नीचे भगवती अन्नपूर्णा की मूर्ति सिंहासन या चौकी पर स्थापित करे। उस मूर्ति के बायीं ओर अन्न से भरा हुआ पात्र तथा दाहिने हाथ में करछुल रखें। धूप दीप, नैवेद्य, सिन्दूर, फूल आदि भगवती अन्नपूर्णा को समर्पित करे। अपने हाथ के डोरे को निकालकर भगवती के चरणों में रख प्रार्थना करे। उसके बाद अन्नपूर्णा व्रत की कथा सुनें। गुरू को दक्षिणा प्रदान करें। 17 प्रकार के पकवानों का भोग लगाएँ। सुपात्र को भोजन करायें, उसके बाद रात में स्वयं भी बिना नमक का भोजन करें।