जानें- बुध ग्रह के जन्म की पौराणिक कथा
किदवंती है कि बृहस्पति देव की अर्धांगिनी तारा बहुत खूबसूरत थी। एक बार तारा का दीदार चंद्रदेव से हो गया। उस समय तारा की खूबसूरती को देखकर चंद्रदेव ने तारा को पाने का निश्चय किया। हालांकि तारा की शादी हो चुकी थी।

बुधवार का दिन भगवान गणेश और श्रीकृष्ण को समर्पित होता है। इस दिन बुध ग्रह की भी पूजा उपासना की जाती है। बुध को बुद्धि का कारक माना जाता है। जातक की कुंडली में बुध के बली रहने से वह अपने जीवन में प्रसिद्धि पाता है। वहीं, बुध के कमजोर रहने से जीवन में अस्थिरता आती है। ज्योतिषों की मानें तो बुध ग्रह की गिनती शुभ ग्रहों में होती है। बुध के बली रहने से अविवाहित जातक की शादी शीघ्र हो जाती है। इसके लिए बुधदेव की निरंतर पूजा-उपासना करनी चाहिए। लेकिन क्या आपको बुध ग्रह के जन्म के माता-पिता के बारे में पता है? आइए, बुध ग्रह के जन्म की पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं-
बुध ग्रह के जन्म की कथा
किदवंती है कि बृहस्पति देव की अर्धांगिनी तारा बहुत खूबसूरत थी। एक बार तारा का दीदार चंद्रदेव से हो गया। उस समय तारा की खूबसूरती को देखकर चंद्रदेव ने तारा को पाने का निश्चय किया। हालांकि, तारा की शादी हो चुकी थी। ऐसी परिस्थिति में तारा किसी अन्य के लिए आरक्षित नहीं थी। जब चंद्रदेव को कोई उपाय न सुझा, तो उन्होंने तारा का अपहरण कर दिया। जब बृहस्पति देव को यह ज्ञात हुआ, तो वे आग बबूला हो उठे।
उन्होंने चंद्रदेव से तारा को सकुशल स्वर्ग भेजने की बात की, लेकिन चंद्रदेव ने बृहस्पति की मांग को ठुकरा दिया और युद्ध को ललकारा। इसमें तारा की भी सहमति प्रतीत होती है। चूंकि आगे चलकर तारा ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम बुध था। इससे स्पष्ट होता है कि तारा भी चंद्रदेव को चाहती थी।
कालांतर में चंद्रदेव और बृहस्पति देव के साथ युद्ध हुआ। इस युद्ध से पृथ्वी लोक पर हाहाकार मच गया। उस समय पृथ्वीवासियों ने ब्रह्माजी से युद्ध रोकने की याचना की। ब्रह्माजी की मध्यस्थता के चलते युद्ध रुक किया। इसके बाद ब्रह्माजी ने देवी तारा को बृहस्पति को सौंप दिया। जब तारा ने पुत्र बुध को जन्म दिया, तो पुत्र बुध को लेकर दोबारा चंद्रदेव और बृहस्पति के बीच वाक्य युद्ध छिड़ गया। तब तारा ने ब्रह्माजी को बताया कि बुध के जनक चंद्रदेव हैं।
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