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    Kamika Ekadashi: आज है कामिका एकादशी, जानें महत्व, शुभ मुहुर्त और पूजा की विधि

    By Ruhee ParvezEdited By:
    Updated: Sun, 28 Jul 2019 10:58 AM (IST)

    सावन शिवजी का प्रिय महीना है और एकादशी भगवान विष्णु की प्रिय तिथि है। कामिका एकादशी पर इन दोनों देवताओं की खास पूजा करें।

    Kamika Ekadashi: आज है कामिका एकादशी, जानें महत्व, शुभ मुहुर्त और पूजा की विधि

    नई दिल्ली, जेएनएन। रविवार, 28 जुलाई यानी आज सावन महीने की कामिका एकादशी है। इसका हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। सावन शिवजी का प्रिय महीना है और एकादशी भगवान विष्णु की प्रिय तिथि है। कामिका एकादशी पर इन दोनों देवताओं की खास पूजा करें। 

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    कामिका एकादशी का महत्व

    मान्यता है कि इस एकादशी के महत्व के बारे में भगवान कृष्ण ने खुद युधिष्ठर को बताया था। उन्होंने कहा था कि इस एकादशी का व्रत रखने वाले को अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है। इस एकादशी को लेकर मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी तरह के कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं। मोक्ष की प्राप्ति होती है। सभी परेशानियों का अंत होता है और हर काम में सफलता मिलती है। मान्यता है कि कामिका एकादशी का महत्व इतना है कि खुद भगवान कृष्ण ने इसके बारे में युधिष्ठिर को बताया था। इस दिन गरीबों और ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और दान देना चाहिए।

    कामिका एकादशी का शुभ मुहूर्त

    शुभ मुहूर्त शुरू - 07:46 शाम, 27 जुलाई, 2019

    शुभ मुहूर्त समाप्त - 06:49 शाम, 28 जुलाई, 2019

    कामिका एकादशी से जुड़ी खास बातें

    कामिका एकादशी पर स्नान के बाद सबसे पहले श्री गणेश की पूजा करें। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति और शिवलिंग को गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं। पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद और मिश्री मिलाकर बनाना चाहिए। पंचामृत स्नान के बाद एक बार फिर से पानी से स्नान कराएं। विष्णुजी और शिवजी के साथ ही माता लक्ष्मी और माता पार्वती की भी पूजा करें।

    देवी-देवताओं को अबीर, गुलाल, इत्र आदि सुगंधित चीजें चढ़ाएं। चावल और फूल अर्पित करें। धूप, दीप जलाकर आरती करें। विष्णुजी को मक्खन-मिश्री का भोग लगाएं, तुलसी दल अवश्य चढ़ाएं। शिवजी को मिठाई चढ़ाएं, ध्यान रखें शिवजी को तुलसी न चढ़ाएं। आरती के बाद पूजा में हुई भूल के लिए भगवान से क्षमा याचना करें।

    कामिका एकादशी कथा

    पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में गुस्सैल ठाकुर रहता था। एक दिन क्रोध में आकर उसका ब्राह्मण से झगड़ा हो जाता है। झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि ठाकुर से ब्राह्मण का खून हो जाता है। अपने अपराध की क्षमा याचना हेतु ठाकुर ने ब्राह्मण का क्रियाक्रम कराना चाहा। लेकिन पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया और वह ब्रह्म हत्या का दोषी बन गया। परिणामस्वरूप ब्राह्मणों ने भोजन करने से मना कर दिया। 

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