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Kaal Bhairav Jayanti 2020: शिव के पांचवे रुद्रावतार हैं काल भैरव, सभी सिद्धियां करते हैं प्रदान

Kaal Bhairav Jayanti 2020 कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति भयमुक्त होता है और उसके जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से रोगों से भी मुक्ति मिलती है।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2020 09:43 AM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2020 09:44 AM (IST)
शिव के पांचवे रुद्रावतार हैं काल भैरव, सभी सिद्धियां करते हैं प्रदान

Kaal Bhairav Jayanti 2020: कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति भयमुक्त होता है और उसके जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से रोगों से भी मुक्ति मिलती है। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि काल भैरव जयंती के दिन भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। भगवान काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है। हिंदू धर्म में काल भैरव जयंती सबसे शुभ दिनों में से एक माना गया है। इस दिन भक्त सुबह सूर्योदय से पहले उठते हैं और स्नान करते हैं। फिर इसके बाद भगवान काल भैरव का आशीर्वाद लेने के लिए विशेष पूजा की जाती है। काल भैरव जयंती को भैरव अष्टमी और भैरव जयंती के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप और काल भैरव कथा का पाठ करना चाहिए। इससे जीवन में सफलता और कामनाओं की पूर्ति होती है।

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काल भैरव पूजा का समय

काल भैरव जयंती हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस दिन भोलेनाथ के रौद्र रूप काल भैरव का अवतरण हुआ था। इस वर्ष यह जयंती 7 दिसंबर, सोमवार को है। हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह जयंती मनाई जाती है। अष्टमी तिथि 7 दिसंबर को शाम 6.47 से 8 दिसंबर को शाम 5.17 बजे तक रहेगी। तंत्र साधना के देवता काल भैरव की पूजा रात में की जाती है, इसलिए अष्टमी में प्रदोष व्यापनी तिथि का विशेष महत्व होता है। यह दिन तंत्र साधना के लिए उपयुक्त माना गया है।

इतिहास और महत्व

शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव ने कृष्ण अष्टमी पर काल भैरव का रूप धारण किया था। उन्हें काशी के निर्देशों और संरक्षण का रक्षक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के शत्रु दूर हो जाते हैं। कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे राजाओं ने यह पता लगाने के लिए युद्ध लड़ा कि सबसे अच्छा यानी सबसे सर्वश्रेष्ठ कौन है। सभी देवताओं को बुलाया गया, जिससे यह चुना जा सके कि सबसे सर्वश्रेष्ठ कौन है। इस दौरान भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव को अपशब्द कहे, जिससे उन्होंने अपना रौद्र रुप काल भैरव धारण किया।

क्रोध में उन्होंने ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया। ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर काल भैरव के हाथ से चिपक गया। ऐसे में काल भैरव को ब्रह्म हत्या से मुक्ति दिलाने के लिए शिव शंकर ने उन्हें प्रायश्चित करने के लिए कहा। भोलेनाथ ने कहा कि उन्हें त्रिलोक में भ्रमण करना होगा। जैसे ही ब्रह्मा जी का सिर उनके हाथ से छूट जाएगा वैसे ही वो ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो जाएंगे। त्रिलोक भ्रमण करते समय जब वो काशी पहुंचे तब उनके हाथ से ब्रह्मा जी का सिर छूट गया। इसके बाद काल भैरव काशी में ही स्थापित हो गए और शहर के कोतवाल कहलाए।

इन बातों का रखें ख्याल

इस दिन भक्तों को जल्दी उठना चाहिए। इसके बाद स्नानादि समेत सभी नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाना चाहिए। काल भैरव की पूजा करने से पहले भक्तों को घर की अच्छे से सफाई करनी चाहिए। इस दिन कुत्तों को भोजन करना चाहिए। साथ ही उन्हें चोट भी नहीं पहुंचानी चाहिए। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भक्तों को काल भैरव जयंती के दौरान दिन के समय में सोना नहीं चाहिए। इससे व्यक्ति को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है। इस दिन नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। कथाओं के अनुसार, काल भैरव की पूजा सिर्फ माता पार्वती के साथ ही की जानी चाहिए।

सभी सिद्धियों को प्रदान करते हैं भैरव

काल भैरव की विधिवत पूजन करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। उन्हें तंत्र का देवता माना जाता है। इसके चलते भूत, प्रेत और बाधा जैसी समस्या के लिए काल भैरव का पूजन किया जाता है। इस दिन काले कुत्ते को दूध पिलाने से काल भैरव का आर्शीवाद प्राप्त होता है। काल भैरव को दंड देने वाला देवता भी कहा जाता है, इसलिए उनका हथियार दंड है। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से भी उनकी विशेष कृषा प्राप्त होती है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति चौकी पर गंगाजल छिड़ककर स्थापित करें। इसके बाद काल भैरव को काले, तिल, उड़द और सरसों का तेल अर्पित करें। अंत में श्वान का पूजन भी किया जाता है। इस दिन लोग व्रत रखकर भजनों के जरिए उनकी महिमा भी गाते है।

शुभ मुहूर्त

अष्टमी तिथि प्रारंभ - 7 दिसंबर को शाम 6.47 बजे से।

अष्टमी तिथि का समापन - 8 दिसंबर को शाम 5.17 बजे तक।

पूजा मुहूर्त - काल भैरव की पूजा रात के समय में ही की जाती है।

काल भैरव मंत्र

अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,

भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

उपाय

भैरव अष्टमी के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से 'ॐ नम: शिवाय' लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं। भैरव देव के मंदिर में जाकर सिंदूर, सरसों का तेल, नारियल, चना, चिरौंजी, पुए और जलेबी चढ़ाकर भक्ति भाव से पूजन करें।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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