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Kalpavas: माघ माह में क्या है कल्पवास का विधान? जानें इसके विशिष्ट नियम

Kalpavas पुराणों में माघ में पूरे एक महीने संगम तट पर रह कर नियमित रूप से स्नान दान करने तथा संतों के सतसंग से पुण्य अर्जित करने का विधान है। इसे ही शास्त्रों में कल्पवास कहा गया है। आइए जानते हैं क्या हैं कल्पवास के नियम....

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 06:16 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 06:16 PM (IST)
Kalpavas: माघ माह में क्या है कल्पवास का विधान? जानें इसके विशिष्ट नियम
Kalpavas: माघ माह में क्या है कल्पवास का विधान? जानें इसके विशिष्ट नियम

Kalpavas: हिंदू धर्म में माघ के महीने का विशेष महत्व है। शास्त्रों, पुराणों में इस माह को पवित्र और मोक्ष दायक माना गया है। मान्यता है कि माघ महीने में किये गए स्नान-दान, जप और तप अक्षय फल प्रदान करते हैं। माघ महीने में पवित्र नदियों विशेष कर गंगा नदी में स्नान और दान का विधान है। पुराणों में माघ में पूरे एक महीने संगम तट पर रह कर नियमित रूप से स्नान दान करने तथा संतों के सतसंग से पुण्य अर्जित करने का विधान है। इसे ही शास्त्रों में कल्पवास कहा गया है। प्रयागराज में संगम तट पर कल्पवास करने को मोक्षदायक कहा गया है। आइए जानते हैं क्या है कल्पवास और क्या हैं कल्पवास करने के नियम....

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क्या है कल्पवास –

हिंदू धर्मशास्त्रों में कल्पवास को सन्यास और वानप्रस्थ आश्रम का संयोजक कहा गया है। शास्त्रों के अनुसार सन्यास आश्रम में प्रवेश करने के पूर्व एक माह माघ माह में कल्पवास करने का विधान है। कल्पवास शब्द 'कल्प' अर्थात एक निश्चित समयावधि तथा वास का अर्थ है रहना। इस आधार पर कल्पवास, एक निश्चित समयावधि तक गंगा तट पर रहने का कहा जाता है। सामान्यतया कल्पवास पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक एक महीने का होता है। लेकिन सामर्थ्य अनुसार संकल्प ले कर 5, 11 या 21 दिन का कल्पवास भी किया जा सकता है। कल्पवास में नियमित रूप से गंगा स्नान करने और साधु-संन्यासियों के सतसंग का विधान है। इसके साथ ही कल्पवास के कुछ विशिष्ट नियम भी हैं आइए जानते हैं उनके बारे में....

कल्पवास के विशिष्ट नियम

1. कल्पवास करने वाले व्यक्ति को एक निश्चित समयावधि या पूरे माघ माह संगम तट पर कुटिया बनाकर रहना होता है। इस काल में उन्हें अपने घर परिवार से विरक्त रहना होता है।

2. कल्पवास के दौरान दिन में केवल एक समय ही भोजन किया जाता है। कल्पवास में केवल सात्विक भोजन ही करना चाहिए। भोजन अपने हाथ से बना कर ही करना चाहिए।

3. कल्पवासियों को नियमित रूप से दिन में तीन बार गंगा में स्नान करने और पूजन करने का विधान है।

4. कल्पवास के दौरान जमीन पर ही बिस्तर बिछा कर सोया जाता है। इस काल में मन और वचन और कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

5. कल्पवास के काल में व्यक्ति को अपनी बुरी आदतों और व्यसनों पर नियंत्रण रखना होता है। इस काल में धूम्रपान, मदिरा,तंबाकू आदि का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए।

6. कल्पवास में झूठ और अपशब्द भी नहीं बोलना चाहिए।

कल्पवास के समय में व्यक्ति को संकल्पित, संगम क्षेत्र से बाहर नहीं जाना चाहिए। इस काल में घर गृहस्थी की चिंता से मुक्त रहना चाहिए, अपना ध्यान सतसंग और भगवत भजन में लगाना चाहिए।

7. कल्पवास के काल में अपनी कुटी में तुलसी जी का पौधा लगा कर, उसका नियमित रूप से पूजन करना चाहिए।

8. कल्पवास के अंत में भगवान सत्यनारायण का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद यथाशक्ति दान दे कर कल्पवास पूरा करना चाहिए।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

 


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