Kalashtami 2022 Date: जानें, काल भैरव देव की उत्पत्ति की कथा
Kalashtami Date 2022 कालाष्टमी को काल भैरव देव की पूजा-उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि काभक्ति और आराधना करने से व्यक्ति के जीवन से समस्त प्रकार के दुःख संकट काल और क्लेश दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में यश और कीर्ति का आगमन होता है।
Kalashtami 2022: हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस प्रकार माह माह में शुक्ल पक्ष की कालाष्टमी 25 जनवरी को है। इस दिन काल भैरवदेव की उत्पत्ति हुई है। अत: कालाष्टमी को काल भैरव देव की पूजा-उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि काल भैरव देव की भक्ति और आराधना करने से व्यक्ति के जीवन से समस्त प्रकार के दुःख, संकट, काल और क्लेश दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में यश और कीर्ति का आगमन होता है। आइए, काल भैरव देव की उत्पत्ति की जानते हैं-
काल भैरव देव की उत्पत्ति की कथा
किदवंती है कि चिरकाल में एक बार देवताओं ने भगवान ब्रह्मा देव और विष्णु जी से पूछा कि-हे जगत के रचयिता और पालनहार कृपा बताएं कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है? देवताओं के इस सवाल से ब्रह्मा और विष्णु जी में श्रेष्ठता साबित करने की होड़ लग गई। यह देख सभी देवतागण, ब्रह्मा और विष्णु जी सहित कैलाश पहुंचकर भगवान भोलेनाथ से पूछा- हे देवों के देव महादेव! अब आप ही बताएं कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं?
देवताओं के इस सवाल पर तत्क्षण भगवान शिव जी के तेजोमय और कांतिमय शरीर से ज्योति कुञ्ज निकली, जो नभ और पाताल की दिशा में बढ़ रही थी। तब महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु जी से कहा-आप दोनों में जो सबसे पहले इस ज्योति की अंतिम छोर पर पहुंचेंगे। वहीं, सबसे श्रेष्ठ है। इसके बाद ब्रह्मा और विष्णु जी अनंत ज्योति की छोर तक पहुंचने के लिए निकल पड़े। कुछ समय बाद ब्रम्हा और विष्णु जी लौट आए, तो शिव जी ने उनसे पूछा-हे देव क्या आपको अंतिम छोर प्राप्त हुआ।
इस पर विष्णु जी ने कहा -हे महादेव यह ज्योति अनंत है, इसका कोई अंत नहीं है। जबकि ब्रम्हा जी झूठ बोल गए, उन्होंने कहा- मैं इसके अंतिम छोर तक पहुंच गया था। यह जान शिव जी ने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। इससे ब्रह्मा जी क्रोधित हो उठें, और शिव जी के प्रति अपमान जनक शब्दों का प्रयोग करने लगे।
यह सुन भगवान शिव क्रोधित हो उठें और उनके क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई, जिन्होंने ब्रम्हा जी के चौथे मुख को धड़ से अलग कर दिया। उस समय ब्रह्मा जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने तत्क्षण भगवान शिव जी से क्षमा याचना की। इसके बाद कैलाश पर्वत पर काल भैरव देव के जयकारे लगने लगे।
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