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Kalash Sthapana: नवरात्रि में इस तरह करें घटस्थापना, जानें कलश स्थापना का मुहूर्त

Kalash Sthapana 2020 सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है नवरात्रि। यह पर्व उत्तर भारत के साथ-साथ गुजरात पश्चिम बंगाल महाराष्ट्र और झारखंड में धूमधाम से मनाया जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 03 Sep 2020 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 04 Sep 2020 12:53 PM (IST)
Kalash Sthapana: नवरात्रि में इस तरह करें घटस्थापना, जानें कलश स्थापना का मुहूर्त
Kalash Sthapana: नवरात्रि में इस तरह करें घटस्थापना, जानें कलश स्थापना का मुहूर्त

Kalash Sthapana 2020: सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है नवरात्रि। यह पर्व उत्तर भारत के साथ-साथ गुजरात, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और झारखंड में धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार पितृ पक्ष की समाप्ति 17 सितंबर 2020 को हो रही है और इससे ठीक एक महीने बाद शारदीय नवरात्रि 2020 की शुरुआत हो रही है जो 17 अक्टूबर 2020 है। नवरात्रि के दौरान घटस्थापना किया जाता है। घट स्थापना, कलश स्थापना को कहते हैं। आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य पं. दयानंद शास्त्री से जानते हैं कि कलश स्थापना की पौराणिक विधि क्या है। उससे पहले जानते हैं इसका शुभ मुहूर्त:

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घट स्थापना का शुभ मुहूर्त:

शारदीय नवरात्रों का आरंभ 17 अक्टूबर, आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगी। दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है। घट स्थापना मुहूर्त का समय शनिवार, अक्टूबर 17, 2020 को प्रात:काल 06:27 से 10:13 तक है। घटस्थापना के लिए अभिजित मुहूर्त प्रात:काल 11:44 से 12:29 तक रहेगा।

घट स्थापना की विधि:

नवरात्रि के प्रथम दिन ही घटस्थापना की जाती है। इसे कलश स्थापना भी कहा जाता है। इसके लिए कुछ सामग्रियों की आवश्यकता होती है।

  • जल से भरा हुआ पीतल,
  • चांदी, तांबा या मिट्टी का कलश,
  • पानी वाला नारियल,
  • रोली या कुमकुम, आम के 5 पत्ते,
  • नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा या चुनरी,
  • लाल सूत्र/मौली,
  • साबुत सुपारी, साबुत चावल और सिक्के,
  • कलश ढकने के लिए ढक्कन और जौ

यह हैं कलश स्थापना की पौराणिक विधि:

मां दुर्गा की मूर्ति के दाईं तरफ कलश को स्थापित किया जाना चाहिए। जिस स्थान पर कलश स्थापित करना है वहां पर किसी बर्तन के अन्दर मिट्टी भरकर रखें या फिर ऐसे ही जमीन पर मिट्टी का ढेर बनाकर उसे जमा दें। यह मिट्टी का ढेर ऐसे बनाएं कि उस पर कलश रखने के बाद भी कुछ जगह बाकी रह जाए। कलश के ऊपर रोली अथवा कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं। इसके बाद कलश पर मौली बांध दें। इसके बाद कलश में थोड़ा गंगाजल डालें और बाकी शुद्ध पीने के पानी से कलश को भर दें। जल से भरे कलश के अंदर थोड़े से अक्षत (चावल), 2-4 दूर्वा घास, साबुत सुपारी, और 1 या दो रुपये का सिक्का डालकर चारों ओर आम के 4-5 पत्ते लगा दें। फिर मिट्टी या धातु के बने ढक्कन से कलश को ढक दें। इस ढक्कन पर भी स्वस्तिक बनाएं।

इस ढक्कन पर आपको स्वस्तिक बनाना होगा। फिर उस ढक्कन पर थोड़े चावल रखने होंगे। फिर एक नारियल पर लाल रंग की चुनरी लपेटें। इसे तिलक करें और स्वस्तिक बनाएं। नारियल को ढक्कन के ऊपर चावल के ढेर के ऊपर रख दें। नारियल का मुख हमेशा अपनी ओर ही रखे चाहे आप किसी भी दिशा की ओर मुख करके पूजा करते हों। दीपक का मुख पूर्व दिशा की ओर रखें। अगर शारदीय नवरात्र व्रत हो तो कलश के नीचे बची जगह पर अथवा ठीक सामने जौं बोने अच्छे होते हैं।  


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