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    Janmashtami 2024: जन्माष्टमी की पूजा के दौरान करें इस स्तोत्र का पाठ, खुशियों से भर जाएगा आपका जीवन

    Updated: Sun, 25 Aug 2024 04:15 PM (IST)

    हर साल भादों माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण की विधिपर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही अंत में आरती कर भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि जन्माष्टमी की पूजा के दौरान श्री गोविंद दामोदर स्तोत्रम् (Govind Damodar Stotram Lyrics) का पाठ न करने से साधक शुभ फल की प्राप्ति से वंचित रहता है।

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    Lord Krishna: गोविंद दामोदर स्तोत्र से मिलते हैं कई चमत्कारी फायदे (Pic Credit- freepik)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Janmashtami 2024: पंचांग के अनुसार, देशभर में जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा। भादों माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस तिथि पर लड्डू गोपाल का अवतरण हुआ था। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जन्माष्टमी के दिन सच्चे मन से श्री गोविंद दामोदर स्तोत्रम् का पाठ करने से साधक को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और लड्डू गोपाल प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा सुख- शांति में वृद्धि होती है। आइए पढ़ते हैं श्री गोविंद दामोदर स्तोत्रम्।

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    श्री गोविंद दामोदर स्तोत्रम्

    अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानांदुःशासनेनाहृतवस्त्रकेशा

    कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथागोविन्द दामोदर माधवेति॥

    श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारेभक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे।

    त्रायस्व मां केशव लोकनाथगोविन्द दामोदर माधवेति॥

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    विक्रेतुकामाखिलगोपकन्यामुरारिपादार्पितचित्तवृत्तिः।

    दध्यादिकं मोहवशादवोचद्गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    उलूखले सम्भृततण्डुलांश्चसंघट्टयन्त्यो मुसलैः प्रमुग्धाः।

    गायन्ति गोप्यो जनितानुरागागोविन्द दामोदर माधवेति॥

    काचित्कराम्भोजपुटे निषण्णंक्रीडाशुकं किंशुकरक्ततुण्डम्।

    अध्यापयामास सरोरुहाक्षीगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    गृहे गृहे गोपवधूसमूहःप्रतिक्षणं पिञ्जरसारिकाणाम्।

    स्खलद्गिरं वाचयितुं प्रवृत्तोगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    पर्य्यङ्किकाभाजमलं कुमारंप्रस्वापयन्त्योऽखिलगोपकन्याः।

    जगुः प्रबन्धं स्वरतालबन्धंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    रामानुजं वीक्षणकेलिलोलंगोपी गृहीत्वा नवनीतगोलम्।

    आबालकं बालकमाजुहावगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    विचित्रवर्णाभरणाभिरामेऽभिधेहिवक्त्राम्बुजराजहंसि।

    सदा मदीये रसनेऽग्ररङ्गेगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    अङ्काधिरूढं शिशुगोपगूढंस्तनं धयन्तं कमलैककान्तम्।

    सम्बोधयामास मुदा यशोदागोविन्द दामोदर माधवेति॥

    क्रीडन्तमन्तर्व्रजमात्मजं स्वंसमं वयस्यैः पशुपालबालैः।

    प्रेम्णा यशोदा प्रजुहाव कृष्णंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    यशोदया गाढमुलूखलेनगोकण्ठपाशेन निबध्यमानः।

    रुरोद मन्दं नवनीतभोजीगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    निजाङ्गणे कङ्कणकेलिलोलंगोपी गृहीत्वा नवनीतगोलम्।

    आमर्दयत्पाणितलेन नेत्रेगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    गृहे गृहे गोपवधूकदम्बाःसर्वे मिलित्वा समवाययोगे।

    पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    मन्दारमूले वदनाभिरामंबिम्बाधरे पूरितवेणुनादम्।

    गोगोपगोपीजनमध्यसंस्थंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    उत्थाय गोप्योऽपररात्रभागेस्मृत्वा यशोदासुतबालकेलिम्।

    गायन्ति प्रोच्चैर्दधि मन्थयन्त्योगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    जग्धोऽथ दत्तो नवनीतपिण्डोगृहे यशोदा विचिकित्सयन्ती।

    उवाच सत्यं वद हे मुरारेगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    अभ्यर्च्य गेहं युवतिःप्रवृद्धप्रेमप्रवाहा दधि निर्ममन्थ।

    गायन्ति गोप्योऽथ सखीसमेतागोविन्द दामोदर माधवेति॥

    क्वचित् प्रभाते दधिपूर्णपात्रेनिक्षिप्य मन्थं युवती मुकुन्दम्।

    आलोक्य गानं विविधं करोतिगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    क्रीडापरं भोजनमज्जनार्थंितैषिणी स्त्री तनुजं यशोदा।

    आजूहवत् प्रेमपरिप्लुताक्षीगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    सुखं शयानं निलये च विष्णुंदेवर्षिमुख्या मुनयः प्रपन्नाः।

    तेनाच्युते तन्मयतां व्रजन्तिगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    विहाय निद्रामरुणोदये चविधाय कृत्यानि च विप्रमुख्याः।

    वेदावसाने प्रपठन्ति नित्यंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    वृन्दावने गोपगणाश्च गोप्योविलोक्य गोविन्दवियोगखिन्नाम्।

    राधां जगुः साश्रुविलोचनाभ्यांगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    प्रभातसञ्चारगता नुगावस्तद्रक्षणार्थं तनयं यशोदा।

    प्राबोधयत् पाणितलेन मन्दंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    प्रवालशोभा इव दीर्घकेशावाताम्बुपर्णाशनपूतदेहाः।

    मूले तरूणां मुनयः पठन्तिगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    एवं ब्रुवाणा विरहातुरा भृशंव्रजस्त्रियः कृष्णविषक्तमानसाः।

    विसृज्य लज्जां रुरुदुः स्म सुस्वरंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    गोपी कदाचिन्मणिपिञ्जरस्थंशुकं वचो वाचयितुं प्रवृत्ता।

    आनन्दकन्द व्रजचन्द्र कृष्णगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    गोवत्सबालैः शिशुकाकपक्षंबध्नन्तमम्भोजदलायताक्षम्।

    उवाच माता चिबुकं गृहीत्वागोविन्द दामोदर माधवेति॥

    प्रभातकाले वरवल्लवौघागोरक्षणार्थं धृतवेत्रदण्डाः।

    आकारयामासुरनन्तमाद्यंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    जलाशये कालियमर्दनाययदा कदम्बादपतन्मुरारिः।

    गोपाङ्गनाश्चुक्रुशुरेत्य गोपागोविन्द दामोदर माधवेति॥

    अक्रूरमासाद्य यदा मुकुन्दश्चापोत्सवार्थंमथुरां प्रविष्टः।

    तदा स पौरैर्जयतीत्यभाषिगोविन्द दामोदर माधवेति॥31॥

    कंसस्य दूतेन यदैव नीतौवृन्दावनान्ताद् वसुदेवसूनू।

    रुरोद गोपी भवनस्य मध्येगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    सरोवरे कालियनागबद्धंशिशुं यशोदातनयं निशम्य।

    चक्रुर्लुठन्त्यः पथि गोपबालागोविन्द दामोदर माधवेति॥33॥

    अक्रूरयाने यदुवंशनाथंसंगच्छमानं मथुरां निरीक्ष्य।

    ऊचुर्वियोगात् किल गोपबालागोविन्द दामोदर माधवेति॥34॥

    चक्रन्द गोपी नलिनीवनान्तेकृष्णेन हीना कुसुमे शयाना।

    प्रफुल्लनीलोत्पललोचनाभ्यांगोविन्द दामोदर माधवेति॥35॥

    मातापितृभ्यां परिवार्यमाणागेहं प्रविष्टा विललाप गोपी।

    आगत्य मां पालय विश्वनाथगोविन्द दामोदर माधवेति॥36॥

    वृन्दावनस्थं हरिमाशु बुद्ध्वागोपी गता कापि वनं निशायाम्।

    तत्राप्यदृष्ट्वातिभयादवोचद्गोविन्द दामोदर माधवेति॥37॥

    सुखं शयाना निलये निजेऽपिनामानि विष्णोः प्रवदन्ति मर्त्याः।

    ते निश्चितं तन्मयतां व्रजन्तिगोविन्द दामोदर माधवेति॥38॥

    सा नीरजाक्षीमवलोक्यराधां रुरोद गोविन्द वियोगखिन्नाम्।

    सखी प्रफुल्लोत्पललोचनाभ्यांगोविन्द दामोदर माधवेति॥39॥

    जिह्वे रसज्ञे मधुरप्रियात्वं सत्यं हितं त्वां परमं वदामि।

    आवर्णयेथा मधुराक्षराणिगोविन्द दामोदर माधवेति॥40॥

    आत्यन्तिकव्याधिहरं जनानांचिकित्सकं वेदविदो वदन्ति।

    संसारतापत्रयनाशबीजंगोविन्द दामोदर माधवेति॥41॥

    ताताज्ञया गच्छति रामचन्द्रेसलक्ष्मणेऽरण्यचये ससीते।

    चक्रन्द रामस्य निजा जनित्रीगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    एकाकिनी दण्डककाननान्तात्सा नीयमाना दशकन्धरेण।

    सीता तदाक्रन्ददनन्यनाथागोविन्द दामोदर माधवेति॥

    रामाद्वियुक्ता जनकात्मजासा विचिन्तयन्ती हृदि रामरूपम्।

    रुरोद सीता रघुनाथ पाहिगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    प्रसीद विष्णो रघुवंशनाथसुरासुराणां सुखदुःखहेतो।

    रुरोद सीता तु समुद्रमध्येगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    अन्तर्जले ग्राहगृहीतपादोविसृष्टविक्लिष्टसमस्तबन्धुः।

    तदा राजेन्द्रो नितरां जगादगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    हंसध्वजः शङ्खयुतो ददर्शपुत्रं कटाहे प्रपतन्तमेनम्।

    पुण्यानि नामानि हरेर्जपन्तंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    दुर्वाससो वाक्यमुपेत्य कृष्णासा चाब्रवीत् काननवासिनीशम्।

    अन्तः प्रविष्टं मनसा जुहावगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    ध्येयः सदा योगिभिरप्रमेयश्चिन्ता-हरश्चिन्तितपारिजातः।

    कस्तूरिकाकल्पितनीलवर्णोगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    संसारकूपे पतितोऽत्यगाधेमोहान्धपूर्णे विषयाभितप्ते।

    करावलम्बं मम देहि विष्णोगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    त्वामेव याचे मम देहिजिह्वे समागते दण्डधरे कृतान्ते।

    वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्यागोविन्द दामोदर माधवेति॥

    भजस्व मन्त्रं भवबन्धमुक्त्यैजिह्वे रसज्ञे सुलभं मनोज्ञम्।

    द्वैपायनाद्यैर्मुनिभिः प्रजप्तंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    गोपाल वंशीधर रूपसिन्धोलोकेश नारायण दीनबन्धो।

    उच्चस्वरैस्त्वं वद सर्वदैवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    जिह्वे सदैवं भज सुन्दराणिनामानि कृष्णस्य मनोहराणि।

    समस्तभक्तार्तिविनाशनानिगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    गोविन्द गोविन्द हरे मुरारेगोविन्द गोविन्द मुकुन्द कृष्ण।

    गोविन्द गोविन्द रथाङ्गपाणेगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    सुखावसाने त्विदमेव सारंदुःखावसाने त्विदमेव गेयम्।

    देहावसाने त्विदमेव जाप्यंगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    दुर्वारवाक्यं परिगृह्य कृष्णामृगीव भीता तु कथं कथञ्चित्।

    सभां प्रविष्टा मनसाजुहावगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेशगोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    श्रीनाथ विश्वेश्वर विश्वमूर्तेश्रीदेवकीनन्दन दैत्यशत्रो।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    गोपीपते कंसरिपो मुकुन्दलक्ष्मीपते केशव वासुदेव।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    गोपीजनाह्लादकर व्रजेशगोचारणारण्यकृतप्रवेश।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    प्राणेश विश्वम्भर कैटभारेवैकुण्ठ नारायण चक्रपाणे।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    हरे मुरारे मधुसूदनाद्यश्रीराम सीतावर रावणारे।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    श्रीयादवेन्द्राद्रिधराम्बुजाक्षगोगोपगोपी सुखदानदक्ष।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    धराभरोत्तारणगोपवेषविहारलीलाकृतबन्धुशेष।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    बकीबकाघासुरधेनुकारेकेशीतृणावर्तविघातदक्ष।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    श्रीजानकीजीवन रामचन्द्रनिशाचरारे भरताग्रजेश।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    नारायणानन्त हरे नृसिंहप्रह्लादबाधाहर हे कृपालो।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    लीलामनुष्याकृतिरामरूपप्रतापदासीकृतसर्वभूप।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारेहे नाथ नारायण वासुदेव।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    वक्तुं समर्थोऽपि न वक्ति कश्चिदहोजनानां व्यसनाभिमुख्यम्।

    जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेवगोविन्द दामोदर माधवेति॥

    ॥ इति श्रीबिल्वमङ्गलाचार्यविरचितं श्रीगोविन्ददामोदरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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