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Holika Dahan 2020 Katha: इस वजह से करते हैं होलिका दहन, पढ़ें भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की ​कहानी

Holika Dahan 2020 Kathaहोलिका दहन क्यों किया जाता है इसके बारे में प्रह्लाद और उनके पिता हिरण्यकश्यप से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। आइए जानते हैं होलिका दहन से जुड़ी कथा।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Mon, 09 Mar 2020 03:00 PM (IST)Updated: Mon, 09 Mar 2020 04:46 PM (IST)
Holika Dahan 2020 Katha: इस वजह से करते हैं होलिका दहन, पढ़ें भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की ​कहानी
Holika Dahan 2020 Katha: इस वजह से करते हैं होलिका दहन, पढ़ें भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की ​कहानी

Holika Dahan 2020 Katha: इस वर्ष होली का त्योहार 10 मार्च दिन मंगलवर को है। इससे एक दिन पूर्व शाम के समय होलिका दहन होगा यानी 09 मार्च दिन सोमवार को होलिका दहन किया जाएगा। होलिका दहन क्यों किया जाता है, इसके बारे में विष्णु भक्त प्रह्लाद और उनके पिता हिरण्यकश्यप से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। आइए जानते हैं होलिका दहन से जुड़ी उस कथा के बारे में।

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होलिका दहन की ​कथा

कश्यप ऋषि के पुत्र हिरण्यकश्यप ने अपनी तपस्या से ब्रह्म देव को प्रसन्न कर लिया था, जिसके परिणाम स्वरूप उसे कोई देवता, देवी, नर, नारी, असुर, यक्ष या कोई अन्य जीव नहीं मार पाएगा। इसके साथ ही उसे न ही अस्त्र से और न ही शस्त्र से, न दिन में, न रात में, न दोपहर में, न घर में, न बाहर, ना आकाश में और ना ही पाताल में मारा जा सकेगा। ब्रह्मा जी के इस वरदान से वह अहंकारी हो गया और खुद को भगवान समझने लगा। वह अपनी प्रजा पर स्वयं की पूजा करने के लिए विवश करने लगा। उन पर अनेक प्रकार के अत्याचार करता।

हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था प्रह्लाद। वह भगवान विष्णु का भक्त था। जब इस बात की जानकारी हिरण्यकश्यप को हुई, तो उसने अपने पुत्र को समझाने का प्रयास किया। उसने प्रह्लाद से विष्णु को छोड़कर उसकी पूजा करने को कहा। लेकिन प्रह्लाद कहां मानने वाले थे, वे भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहे।

इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को तरह तरह की यातनाएं दीं, लेकिन प्रह्लाद अपनी विष्णु भक्ति से तनिक भी विचलित न हुए। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को पहाड़ से नीचे धक्का देने और हाथी के पैरों के तले कुचलने का आदेश दिया, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उनको बचा लिया।

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इस पर हिरण्यकश्यप और क्रोधित हो गया। तब उसकी आज्ञा पर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने के लिए तैयार हुई। उसे वरदान प्राप्त था कि अग्नि से उसकी मृत्यु नहीं होगी। पूर्णिमा के दिन जब होलिका भक्त प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी, तो भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका उस आग में जलकर मर गई। इस वजह से ही हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

अंत में भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण किया। फिर उन्होंने संध्या के समय घर की देहली पर हिरण्यकश्यप को पकड़ लिया। उसे अपनी जांघों पर रखकर अपने नखों से उसका वध कर दिया।


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