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    Hanuman Pujan: मंगलवार के दिन करें ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे जीवन के सभी कष्ट

    Updated: Tue, 05 Mar 2024 07:00 AM (IST)

    मंगलवार के दिन भगवान हनुमान की पूजा का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन हनुमान जी (Lord Hanuman) की पूजा करने से सभी कष्टों का नाश होता है। साथ ही घर में बरकत आती है। वहीं जो लोग कर्ज से परेशान हैं उन्हें इस दिन ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए जो इस प्रकार है -

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    Rin Mochan Mangal Stotra: ऋणमोचन मंगल स्तोत्र

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Rin Mochan Mangal Stotra: मंगलवार का दिन संकटमोचन हनुमान की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन जो भक्त हनुमान जी (Lord Hanuman) की पूजा करते हैं उन्हें जीवन के तमाम कष्टों से छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही मंगल दोष का निवारण होता है। वहीं, जो लोग कर्ज से घिरे हुए हैं, उन्हें मंगलवार के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा करनी चाहिए। साथ ही उन्हें लाल चोला अर्पित करना चाहिए।

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    अंत में ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और आरती से पूजा समाप्त करनी चाहिए। ऐसा करने से आर्थिक संकट दूर होता है। तो आइए इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ करते हैं -

    ।।ऋणमोचन मंगल स्तोत्र।।

    ''मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।

    स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः।।

    लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।

    धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः।।

    अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।

    व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः।।

    एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।

    ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।

    धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।

    कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।

    स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।

    न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।

    अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।

    त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।

    ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।

    भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।

    अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।

    तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्।।

    विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।

    तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः।।

    पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।

    ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः।।

    एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।

    महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा''।।

    इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

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    डिसक्लेमर- 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/जयोतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देंश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी'।