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    Rin Mochan Stotra: आर्थिक तंगी दूर करने के लिए करें नरसिंह ऋण मोचन स्तोत्र का पाठ, मिलेंगे कई लाभ

    Updated: Thu, 20 Jun 2024 06:30 AM (IST)

    ज्योतिष शास्त्र में आर्थिक परेशानी को दूर करने के लिए कई उपायों का वर्णन किया गया है। यदि आप आर्थिक तंगी से छुटकारा पाना चाहते हैं तो गुरुवार को सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करें। साथ ही पूजा के दौरान नरसिंह ऋण मोचन स्तोत्र का पाठ करें। इससे जल्द ही जातक को कर्ज की समस्या से मुक्ति मिलती है।

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    Rin Mochan Stotra: आर्थिक तंगी दूर करने के लिए करें नरसिंह ऋण मोचन स्तोत्र का पाठ, मिलेंगे कई लाभ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Rin Mochan Stotra: सनातन धर्म में गुरुवार का दिन बेहद शुभ माना गया है। यह दिन भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और गुरु बृहस्पति की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके अलावा शुभ फल की प्राप्ति के लिए व्रत भी किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु के संग मां लक्ष्मी की उपासना करने से आर्थिक समस्या दूर हो जाती है और व्रत करने से विवाहित स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अगर गुरुवार व्रत को अविवाहित लड़कियां करती हैं, तो शीघ्र विवाह के योग बनते हैं।

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    श्री नरसिंह ऋण मोचन स्तोत्र ( Narasimha Rin Mochan Stotra)

    ॐ देवानां कार्यसिध्यर्थं सभास्तम्भसमुद्भवम् ।

    श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

    लक्ष्म्यालिङ्गितवामाङ्गं भक्तानामभयप्रदम् ।

    श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

    प्रह्लादवरदं श्रीशं दैतेश्वरविदारणम् ।

    श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

    स्मरणात्सर्वपापघ्नं कद्रुजं विषनाशनम् ।

    श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

    अन्त्रमालाधरं शङ्खचक्राब्जायुधधारिणम् ।

    श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

    सिंहनादेन महता दिग्दन्तिभयदायकम् ।

    श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

    कोटिसूर्यप्रतीकाशमभिचारिकनाशनम् ।

    श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

    वेदान्तवेद्यं यज्ञेशं ब्रह्मरुद्रादिसंस्तुतम् ।

    श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॐ ॥

    इदं यो पठते नित्यं ऋणमोचकसंज्ञकम् ।

    अनृणीजायते सद्यो धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥

    श्री नृसिंह स्तोत्र (Sri Narsingh Stotra)

    कुन्देन्दुशङ्खवर्णः कृतयुगभगवान्पद्मपुष्पप्रदाता

    त्रेतायां काञ्चनाभिः पुनरपि समये द्वापरे रक्तवर्णः ।

    शङ्को सम्प्राप्तकाले कलियुगसमये नीलमेघश्च नाभा

    प्रद्योतसृष्टिकर्ता परबलमदनः पातु मां नारसिंहः ॥

    नासाग्रं पीनगण्डं परबलमदनं बद्धकेयुरहारं

    वज्रं दंष्ट्राकरालं परिमितगणनः कोटिसूर्याग्नितेजः ।

    गांभीर्यं पिङ्गलाक्षं भ्रुकिटतमुखं केशकेशार्धभागं

    वन्दे भीमाट्टहासं त्रिभुवनजयः पातु मां नारसिंहः ॥

    पादद्वन्द्वं धरित्र्यां पटुतरविपुलं मेरुमध्याह्नसेत

    नाभिं ब्रह्माण्डसिन्धो हृदयमभिमुखं भूतविद्वांसनेतः ।

    आहुश्चक्रं तस्य बाहुं कुलिशनखमुखं चन्द्रसूर्याग्निनेत्रम् ।

    वक्त्रं वह्न्यस्य विद्यस्सुरगणविनुतः पातु मां नारसिंहः ॥

    घोरं भीमं महोग्रं स्फटिककुटिलता भीमपालं पलाक्षं

    चोर्ध्वं केशं प्रलयशशिमुखं वज्रदंष्ट्राकरालम् ।

    द्वात्रिंशद्बाहुयुग्मं परिखगदात्रिशूलपाशपाण्यग्निधार

    वन्दे भीमाट्टहासं लखगुणविजयः पातु मां नारसिंहः ॥

    गोकण्ठं दारुणान्तं वनवरविदिपी डिंडिडिंडोटडिंभं

    डिंभं डिंभं डिडिंभं दहमपि दहमः झंप्रझंप्रेस्तु झंप्रैः ।

    तुल्यस्तुल्यस्तुतुल्य त्रिघुम घुमघुमां कुङ्कुमां कुङ्कुमाङ्गं

    इत्येवं नारसिंहं पूर्णचन्द्रं वहति कुकुभः पातु मां नारसिंहः ॥

    भूभृद्भूभुजङ्गं मकरकरकर प्रज्वलज्ज्वालमालं

    खर्जर्जं खर्जखर्जं खजखजखजितं खर्जखर्जर्जयन्तम् ।

    भोभागं भोगभागं गग गग गहनं कद्रुम धृत्य कण्ठं

    स्वच्छं पुच्छं सुकच्छं स्वचितहितकरः पातु मां नारसिंहः ॥

    झुंझुंझुंकारकारं जटमटिजननं जानुरूपं जकारं

    हंहंहं हंसरूपं हयशत ककुभं अट्टहासं विवेशम् ।

    वंवंवं वायुवेगं सुरवरविनुतं वामनाक्षं सुरेशं

    लंलंलं लालिताक्षं लखगुणविजयः पातु मां नारसिंहः ॥

    यं दृष्ट्वा नारसिंहं विकृतनखमुखं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं

    पिङ्गाक्षं स्निग्धवर्णं जितवपुसदृशः कुंचिताग्रोग्रतेजाः ।

    भीताश्चा दानवेन्द्रास्सुरभयविनुतिश्शक्तिनिर्मुक्तहस्तं

    नाशास्यं किं कमेतं क्षपितजनकजः पातु मां नारसिंहः ॥

    श्रीवत्साङ्कं त्रिनेत्रं शशिधरधवलं चक्रहस्तं सुरेशं

    वेदाङ्गं वेदनादं विनुततनुविदं वेदरूपं स्वरूपम् ।

    होंहों होंकारकारं हुतवह नयनं प्रज्वलज्वाल पाक्षं

    क्षंक्षंक्षं बीजरूपं नरहरि विनुतः पातु मां नारसिंहः ॥

    अहो वीर्यमहो शौर्यं महाबलपराक्रमम् ।

    नारसिंहं महादेवं अहोबलमहाबलम् ॥

    ज्वालाहोबलमालोलः क्रोडाकारं च भार्गवम् ।

    योगानन्दश्चत्रवट पावना नवमूर्तये ॥

    श्रीमन्नृसिंह विभवे गरुडध्वजाय तापत्रयोपशमनाय भवौषधाय ।

    तृष्णादि वृश्चिक जलाग्निभुजङ्ग रोग-क्लेशव्ययाय हरये गुरवे नमस्ते ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।