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    Guruvar Vrat: कितने गुरुवार व्रत रखना शुभ? जानिए बृहस्पतिवार व्रत की पूजा विधि और आरती

    By Shivani SinghEdited By:
    Updated: Thu, 15 Sep 2022 08:24 AM (IST)

    Guruvar Vratज्योतिषों की मानें तो गुरु मजबूत रहने से अविवाहित जातक की शीघ्र शादी हो जाती है। इसके लिए ज्योतिष हमेशा अविवाहितों को गुरुवार का व्रत करने की सलाह देते हैं। जानिए गुरुवार व्रत की पूजा विधि आरती और कितने गुरुवार का व्रत रखना होगा शुभ।

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    Guruvar Vrat:कितने गुरुवार व्रत रखना शुभ? जानिए बृहस्पतिवार व्रत की पूजा विधि और आरती

    नई दिल्ली, Guruvar Vrat: पंचांग के अनुसार, गुरुवार का दिन भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करना शुभ माना जाता है।  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अगर व्यक्ति की कुंडली में गुरु मजबूत नहीं है और शादी में कई अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है, तो गुरुवार का व्रत काफी लाभकारी साबित हो सकता है। इसके साथ ही ज्योतिषी अविवाहित जातकों को गुरुवार का व्रत रखने की सलाह देते हैं। माना जाता है कि गुरुवार का व्रत करने से व्यक्ति को सभी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है है । इसके साथ ही कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत हो जाता है। जानिए गुरुवार व्रत के बारे मे सबकुछ।

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     कब से शुरू करें गुरुवार का व्रत?

    ज्योतिषियों के अनुसार, गुरुवार व्रत की शुरुआत पौष मास को छोड़कर किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार के दिन से करना शुभ माना जाता है।

    कितने गुरुवार व्रत रखना शुभ

    भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की कृपा पाने के लिए लगातार 16 गुरुवार का व्रत रखना चाहिए और 17वें गुरुवार को व्रत का उद्यापन करना चाहिए । मासिक धर्म की वजह से महिलाएं व्रत नहीं रख सकती है। इसके अलावा गुरुवार का व्रत 1,3,5,7 और  9 साल या फिर आजीवन भी रख सकते हैं।

    गुरुवार व्रत की पूजा विधि (Thursday Vrat Puja Vidhi)

    • गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करके पीले रंग के वस्त्र धारण कर लें।
    • भगवान विष्णु का ध्यान रखते हुए व्रत का संकल्प लें।
    • भगवान बृहस्पति देव की विधि-विधान से पूजा करें।
    • भगवान को पीले फूल, पीले चंदन के साथ पीले रंग का भोग लगाएं। आप चाहे तो भोग में चने की दाल और गुड़ ले सकते हैं।
    • इसके बाद धूप, दीप आदि जलाकर बृहस्पति देव के व्रत कथा का पाठ कर लें।
    • इसके बाद विधिवत तरीके से आरती करके भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
    • केले की जड़ में जल अर्पण करने के साथ भोग आदि लगाएं।
    • फिर दिनभर फलाहार व्रत रखें और शाम को पीले रंग का भोजन ग्रहण कर लें।

    बृहस्पति देव की आरती (Brihaspati Dev Aarti)

    जय बृहस्पति देवा,

    ऊँ जय बृहस्पति देवा ।

    छिन छिन भोग लगाओ,

    कदली फल मेवा ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा,

    जय बृहस्पति देवा ॥

    तुम पूरण परमात्मा,

    तुम अन्तर्यामी ।

    जगतपिता जगदीश्वर,

    तुम सबके स्वामी ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा,

    जय बृहस्पति देवा ॥

    चरणामृत निज निर्मल,

    सब पातक हर्ता ।

    सकल मनोरथ दायक,

    कृपा करो भर्ता ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा,

    जय बृहस्पति देवा ॥

    तन, मन, धन अर्पण कर,

    जो जन शरण पड़े ।

    प्रभु प्रकट तब होकर,

    आकर द्घार खड़े ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा,

    जय बृहस्पति देवा ॥

    दीनदयाल दयानिधि,

    भक्तन हितकारी ।

    पाप दोष सब हर्ता,

    भव बंधन हारी ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा,

    जय बृहस्पति देवा ॥

    सकल मनोरथ दायक,

    सब संशय हारो ।

    विषय विकार मिटा‌ओ,

    संतन सुखकारी ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा,

    जय बृहस्पति देवा ॥

    जो को‌ई आरती तेरी,

    प्रेम सहित गावे ।

    जेठानन्द आनन्दकर,

    सो निश्चय पावे ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा,

    जय बृहस्पति देवा ॥

    सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।

    बोलो बृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥

    Pic Credit- instagram/_jadevine15_

    डिस्क्लेमर

    ''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''