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    Guru Stotram: जीवन की परेशानियों का चाहते हैं अंत, तो गुरुवार को करें गुरु स्तोत्र का पाठ

    गुरुवार का दिन देवगुरु बृहस्पति और जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन सुबह स्नान करने के बाद श्री हरि और देवगुरु बृहस्पति की उपासना करनी चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि प्रभु की पूजा करने से जातक को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और धन का लाभ मिलता है। पूजा के दौरान गुरु स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए।

    By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Wed, 29 May 2024 08:00 PM (IST)
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    Guru Stotram: जीवन की परेशानियों का चाहते हैं अंत, तो गुरुवार को करें गुरु स्तोत्र का पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Guru Stotram Lyrics: सनातन धर्म में सप्ताह के सभी किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है। ठीक इसी प्रकार गुरुवार का दिन देवगुरु बृहस्पति और जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन सुबह स्नान करने के बाद श्री हरि और देवगुरु बृहस्पति की उपासना करनी चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि प्रभु की पूजा करने से जातक को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और धन का लाभ मिलता है। पूजा के दौरान गुरु स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे जीवन में आने वाली सभी परेशानियों का अंत होगा और जीवन में खुशहाल रहेगा। गुरु स्तोत्र का पाठ इस प्रकार है-

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    गुरु स्तोत्र (Guru Stotram Lyrics)

    गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

    गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

    अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।

    चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥

    अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।

    तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

    अनेकजन्मसंप्राप्तकर्मबन्धविदाहिने ।

    आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

    मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः।

    ममात्मासर्वभूतात्मा तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

    बर्ह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्,

    द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।

    एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,

    भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥

    बृहस्पति कवच (Brihaspati Kavach Lyrics)

    अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञम् सुर पूजितम् ।

    अक्षमालाधरं शांतं प्रणमामि बृहस्पतिम् ॥

    बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु मे गुरुः ।

    कर्णौ सुरगुरुः पातु नेत्रे मे अभीष्ठदायकः ॥

    जिह्वां पातु सुराचार्यो नासां मे वेदपारगः ।

    मुखं मे पातु सर्वज्ञो कंठं मे देवतागुरुः ॥

    भुजावांगिरसः पातु करौ पातु शुभप्रदः ।

    स्तनौ मे पातु वागीशः कुक्षिं मे शुभलक्षणः ॥

    नाभिं केवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः ।

    कटिं पातु जगवंद्य ऊरू मे पातु वाक्पतिः ॥

    जानुजंघे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा ।

    अन्यानि यानि चांगानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरुः ॥

    इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।

    सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।