Guru Pradosh Vrat 2024: इस स्तोत्र के पाठ से दूर होंगी सभी परेशानियां, प्रसन्न होंगे महादेव
सनातन धर्म में महादेव और मां पार्वती की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2024) किया जाता है। साथ ही जातक महादेव की कृपा प्राप्त करने के लिए गरीब लोगों और मंदिर में दान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन कार्यों को करने से जीवन में अन्न और धन की कमी नहीं होती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह का पहला प्रदोष व्रत 28 नवंबर (Guru Pradosh Vrat 2024 Date) को किया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन शुभ मुहूर्त में महादेव और मां पार्वती की पूजा करने से साधक को आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। साथ ही बिगड़े काम पूरे होते हैं। अगर आप भी भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत के दिन शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करें। इसका पाठ करने से जातक के जीवन की सभी तरह की परेशानियां दूर होती हैं।
शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र के पाठ से मिलते हैं ये लाभ
- धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से महादेव प्रसन्न होते हैं।
- जीवन की समस्या से छुटकारा मिलता है।
- कभी भी अन्न और धन की कमी नहीं होती है।
- मानसिक तनाव दूर होता है।
- शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
- बिगड़े काम पूरे होते हैं।
- सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
- सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 28 नवंबर को सुबह 06 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी। इसके अगले दिन यानी 29 नवंबर को सुबह 08 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार 28 नवंबर को मार्गशीर्ष माह का पहला प्रदोष व्रत किया जाएगा। इस दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त (Guru Pradosh Vrat 2024 Puja Time) शाम को 05 बजकर 24 मिनट से लेकर 08 बजकर 06 मिनट तक है। गुरुवार के दिन पड़ने की वजह से इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा।
शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र (Rudrashtakam Stotram Lyrics in Hindi)
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ।।1।।
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं ।
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।।
करालं महाकालकालं कृपालं ।
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ।।2।।
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं ।
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा ।
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।3।।
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं ।
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ।।4।।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ।
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।।
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त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं ।
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।5।।
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी ।
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी ।
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।6।।
न यावद् उमानाथपादारविन्दं ।
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ।
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ।।7।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां ।
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं ।
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ।।8।।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।9।।
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