Gupt Navratri 2025: आषाढ़ गुप्त नवरात्र में हर दिन करें ये पाठ, माता रानी देंगी सुख-समृद्धि का आशीर्वाद
गुप्त नवरात्र की अवधि आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित मानी जाती है। इस दौरान दस महाविद्याओं की पूजा-अर्चना का विधान है। यह पूजा मुख्य रूप से अघोरी व तांत्रिकों द्वारा की जाती है। ऐसे में आपको गुप्त नवरात्र की अवधि में इस स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए, ताकि देवी दुर्गा की कृपा आपके ऊपर बनी रहे।
Ashadh Gupta Navratri 2025 गुप्त नवरात्र में इस तरह मिलेगी माता रानी की कृपा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्र की शुरुआत 26 जून से हो चुकी है, जो 4 जुलाई तक चलने वाली है। गुप्त नवरात्रि में देवी की पूजा के दौरान सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ जरूर करें। यह दुर्गा सप्तशती का ही सार है। ऐसे में यदि आप पूजा के दौरान इसका पाठ करते हैं, तो इससे आपको देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की कृपा प्राप्त हो सकती है।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha Kunjika Stotra)
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥4॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
धार्मिक मान्यता है कि, मां दुर्गा के 10 महाविद्याओं के रूप में प्रकट होने के उपलक्ष्य में गुप्त नवरात्र का पर्व मनाया जाता है। इसीलिए इस अवधि मेमं दस महाविद्याओं की पूजा-अर्चना का विधान है।
अथ मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।
इति मंत्र
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥2॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥4॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥5॥
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धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥8॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥
गुप्त नवरात्र की अवधि में माता दुर्गा के इन दस स्वरूपों की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
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