Ganesh Stuti: वरद चतुर्थी के दिन करें इस गणेश स्तुति का पाठ, होगी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति
Ganesh Stuti प्रथम पूज्य भगवान गणेश के पूजन की वरद गणेश चतुर्थी का पूजन 06 जनवरी को किया जाएगा। श्री शंकरचार्य रचित इस गणेश स्तुति का पाठ करना विशेष फल प्रदान करता है। गणेश जी की इस स्तुति का पाठ करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करनी चाहिए।

Ganesh Stuti: प्रथम पूज्य भगवान गणेश के पूजन की वरद गणेश चतुर्थी का पूजन 06 जनवरी को किया जाएगा। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश का व्रत रखा जाता है और उनका पूजन किया जाता है। भगवान गणेश को मंगलकर्ता और विघ्नहर्ता कहा जाता है। उनके पूजन से भक्तों के जीवन के सभी संकट और बाधाएं दूर होती हैं। साथ ही कोई भी नया कार्य करने से पहले गणेश पूजन करने का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य हमेशा शुभ फलदायी होता है। शुभ और लाभ को भगवान गणेश की संतान माना जाता है। साल की पहली गणेश चतुर्थी के दिन विधि पूर्वक गणेश पूजन करने से साल भर शुभ और लाभ की प्राप्ति होती है।
वरद चतुर्थी के दिन गणेश जी के निमित्त व्रत रखा जाता है। इस दिन गणेश पूजन में गणेश जी को दूर्वा और मोदक का भोग लगाना चाहिए। इस दिन लाल या सिंदूरी रंग के कपड़े पहन कर पूजन करना चाहिए। ये रंग भगवान गणेश को विशेष प्रिय है। इस दिन श्री शंकरचार्य रचित इस गणेश स्तुति का पाठ करना विशेष फल प्रदान करता है। गणेश जी की इस स्तुति का पाठ करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करनी चाहिए।
गणपति स्तुति
मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ।। १।।
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जकं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरमं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ।। २।।
समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ।। ३।।
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरंतनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणं कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ।।४।।
नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजमचिन्त्यरुपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ।। ५।।
महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ।। ६।।
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