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    Ek Dant Katha: जानें क्या है गणेश जी के एक दंत धारक होने की पौराणिक कथा

    By Kartikey TiwariEdited By:
    Updated: Wed, 15 Jul 2020 07:51 AM (IST)

    Ek Dant Katha गणेश जी से जुड़ी नाना प्रकार की कहानियां गणेश पुराण में मिलती हैं। जैसे गणेश जी के एकदंत नाम पड़ने की कहानी भी यहां दी गईं है।

    Ek Dant Katha: जानें क्या है गणेश जी के एक दंत धारक होने की पौराणिक कथा

    Ek Dant Katha: अक्सर लोगों के दिल में सवाल उठता है, देवी देवताओं की कहानियां आती कहां से हैं? जो हर व्रत त्यौहार को एक कथा की जाती है वो सबसे पहले किसने किसको सुनाई होगी? अगर आपके मन में भी ऐसे ही सवाल उठते हैं, तो आपको पुराण पढ़ने चाहिए। बहुत से लोगों ने सिर्फ गरुड़ पुराण के बारे में ही सुना होता है, वो भी जब किसी रिश्तेदार के घर किसी का शोक मनाने जाते हैं और वहां पंडित जी गरुड़ पुराण पढ़ते नजर आते हैं।

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    कुल 18 पुराण हैं, वेदव्यास हैं इनके रचयिता

    दरअसल कुल 18 पुराण हैं। महर्षि वेदव्यास को इन पुराणों की रचना का श्रेय दिया जाता है। 18 पुराणों में देवी देवताओं को आदर्श मानते हुए उनसे जुड़ी बातें सविस्तार बताई गई, ताकि सुनने वाले पाप-पुण्य का फेर समझ सकें। इन्हीं सब में से एक है गणेश पुराण।

    गणेश पुराण

    गणेश पुराण में पांच खंड हैं। पहला खंड आरंभ खंड है। दूसरा खंड परिचय बताता हुआ परिचय खंड है। सभी खंडों में कथाओं के माध्यम से गणेश जी की लीलाओं का वर्णन है। तीसरा खंड मां पार्वती पर आधारित खंड है। इसमें पार्वती जी के जन्म, शिव विवाह की कहानी है। कार्तिकेय के जन्म की कहानी भी इसी खंड में आती है। 

    चौथा खंड है, युद्ध खंड। इसमें मत्सर असुर की कहानी भी है। पांचवा खंड महादेव पुण्य कथा पर आधारित खंड है। इस युग में सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग के बारे में भी कहानियां शामिल की गई हैं। कई कथाओं का वर्णन इसमें मिलता है।

    गणेश जी से जुड़ी नाना प्रकार की कहानियां गणेश पुराण में मिलती हैं। जैसे गणेश जी के एकदंत नाम पड़ने की कहानी भी यहां दी गईं है। इसमें भी कई तरह की कहानियां हैं। जैसे एक जगह कहा गया है कि गणेश जी महाभारत लिख रहे थे। उन्हें लिखने के लिए कलम की आवश्यक्ता थी और उन्होंने अपने एक दांत को कलम बनाया।

    गणेश पुराण में एक कथा गजमुखासुर की भी मिलती है। कथा यह है कि इस राक्षस को किसी भी अस्त्र-शस्त्र से ना मारे जा सकने का वरदान था। भगवान श्री गणेश ने अपने दांत से इसका वध किया था।