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    Falgun Purnima 2023: फाल्गुन पूर्णिमा कब? जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

    By Shivani SinghEdited By: Shivani Singh
    Updated: Tue, 21 Feb 2023 10:42 AM (IST)

    Falgun Purnima 2023 हिंदू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन होलिका दहन का भी पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि फाल्गुन पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को हर तरह के कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।

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    Falgun Purnima 2023: फाल्गुन पूर्णिमा कब? जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

    नई दिल्ली, Falgun Purnima 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर मास में अमावस्या के साथ-साथ पूर्णिमा तिथि आती है। इसी तरह फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि भी काफी खास होती है। क्योंकि इस दिन ही होली का पर्व धूमधाम से पूरे देश में मनाई जाती है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन व्रत रखने का भी विधान है। इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी के साथ चंद्र देव की पूजा करने का विधान है। जानिए फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।

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    फाल्गुन पूर्णिमा 2023 तिथि और शुभ मुहूर्त

    फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि आरंभ- 06 मार्च 2023 को शाम 04 बजकर 17 मिनट से शुरू

    फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि समाप्त- 07 मार्च 2023 को शाम 06 बजकर 09 मिनट तक

    तिथि- उदया तिथि के हिसाब से फाल्गुन पूर्णिमा 7 मार्च को मनाई जाएगी।

    चन्द्रोदय-  7 मार्च को शाम 6 बजकर 8 मिनट तक

    फाल्गुन पूर्णिमा 2023 महत्व

    पूर्णिमा व्रत को लेकर मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ स्नान दान करने से सौभाग्य की प्राप्ति के साथ स्वास्थ्य अच्छा रहता है। पूर्णिमा तिथि को विशेष रूप से भगवान शिव और विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु के लिए विशिष्ट पूजा को सत्य नारायण पूजा के रूप में भी जाना जाता है। इसके साथ ही शाम को चंद्रमा की पूजा करने का विधान है।

    फाल्गुन पूर्णिमा 2023 पूजा विधि

    इस दिन सूर्योदय के समय उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लें। फिर तांबे के लोटे में जल भरकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद विधिवत तरीके से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल चढ़ाने के साथ अबीर, गुलाल, पीला चंदन आदि लगाएं। इसके साथ ही भोग में खीर या सूजी का हलवा चढ़ाएं। इसके साथ ही तुलसी जल रखें। इसके साथ ही मां लक्ष्मी को भी सिंदूर, अक्षत आदि चढ़ाने के साथ भोग लगाएं। इसके बाद घी का दीपक और धूप जलाकर विधित आरती कर लें। अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें।

    डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।