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    Masik Krishna Janmashtami 2023: आज संध्या आरती में जरूर करें राधा चालीसा का पाठ और आरती, पूरी होगी हर मनोकामना

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 09 Jul 2023 11:26 AM (IST)

    Masik Krishna Janmashtami 2023 धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-उपासना करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। अगर आप भी भगवान श्रीकृष्ण की कृपा दृष्टि पाना चाहते हैं तो आज संध्याकाल में विधिवत कृष्ण कन्हैया और राधा रानी की पूजा करें। साथ ही राधा चालीसा का पाठ और आरती करें।

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    Masik Krishna Janmashtami 2023: आज संध्या आरती में जरूर करें राधा चालीसा का पाठ और आरती, पूरी होगी हर मनोकामना

    नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क | Masik Krishna Janmashtami 2023: हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ है। अतः प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस प्रकार, आज सावन माह की कृष्ण जन्माष्टमी है। इस दिन साधक भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की पूजा-उपासना करते हैं। साथ ही उनके निमित्त व्रत उपवास रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-उपासना करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। अगर आप भी भगवान श्रीकृष्ण की कृपा दृष्टि पाना चाहते हैं, तो आज संध्याकाल में विधिवत कृष्ण कन्हैया और राधा रानी की पूजा करें। साथ ही राधा चालीसा का पाठ और आरती करें।

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    श्री राधा चालीसा

    ।। दोहा ।।

    श्री राधे वुषभानुजा , भक्तनि प्राणाधार ।

    वृन्दाविपिन विहारिणी , प्रानावौ बारम्बार ।।

    जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिय सुखधाम ।

    चरण शरण निज दीजिये सुन्दर सुखद ललाम ।।

    ।। चौपाई ।।

    जय वृषभानु कुँवरी श्री श्यामा, कीरति नंदिनी शोभा धामा ।

    नित्य बिहारिनी रस विस्तारिणी, अमित मोद मंगल दातारा ।।

    राम विलासिनी रस विस्तारिणी, सहचरी सुभग यूथ मन भावनी ।।

    करुणा सागर हिय उमंगिनी, ललितादिक सखियन की संगिनी ।।

    दिनकर कन्या कुल विहारिनी, कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनी ।।

    नित्य श्याम तुमररौ गुण गावै,राधा राधा कही हरशावै ।।

    मुरली में नित नाम उचारें, तुम कारण लीला वपु धारें ।।

    प्रेम स्वरूपिणी अति सुकुमारी, श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी ।।

    नवल किशोरी अति छवि धामा, द्दुति लधु लगै कोटि रति कामा ।।

    गोरांगी शशि निंदक वंदना, सुभग चपल अनियारे नयना ।।

    जावक युत युग पंकज चरना, नुपुर धुनी प्रीतम मन हरना ।।

    संतत सहचरी सेवा करहिं, महा मोद मंगल मन भरहीं ।।

    रसिकन जीवन प्राण अधारा, राधा नाम सकल सुख सारा ।।

    अगम अगोचर नित्य स्वरूपा, ध्यान धरत निशिदिन ब्रज भूपा ।।

    उपजेउ जासु अंश गुण खानी, कोटिन उमा राम ब्रह्मिनी ।।

    नित्य धाम गोलोक विहारिन , जन रक्षक दुःख दोष नसावनि ।।

    शिव अज मुनि सनकादिक नारद, पार न पाँई शेष शारद ।।

    राधा शुभ गुण रूप उजारी, निरखि प्रसन होत बनवारी ।।

    ब्रज जीवन धन राधा रानी, महिमा अमित न जाय बखानी ।।

    प्रीतम संग दे ई गलबाँही , बिहरत नित वृन्दावन माँहि ।।

    राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा, एक रूप दोउ प्रीति अगाधा ।।

    श्री राधा मोहन मन हरनी, जन सुख दायक प्रफुलित बदनी ।।

    कोटिक रूप धरे नंद नंदा, दर्श करन हित गोकुल चंदा ।।

    रास केलि करी तुहे रिझावें, मन करो जब अति दुःख पावें ।।

    प्रफुलित होत दर्श जब पावें, विविध भांति नित विनय सुनावे ।।

    वृन्दारण्य विहारिनी श्यामा, नाम लेत पूरण सब कामा ।।

    कोटिन यज्ञ तपस्या करहु, विविध नेम व्रतहिय में धरहु ।।

    तऊ न श्याम भक्तहिं अहनावें, जब लगी राधा नाम न गावें ।।

    व्रिन्दाविपिन स्वामिनी राधा, लीला वपु तब अमित अगाधा ।।

    स्वयं कृष्ण पावै नहीं पारा, और तुम्हैं को जानन हारा ।।

    श्री राधा रस प्रीति अभेदा, सादर गान करत नित वेदा ।।

    राधा त्यागी कृष्ण को भाजिहैं, ते सपनेहूं जग जलधि न तरिहैं ।।

    कीरति हूँवारी लडिकी राधा, सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा ।।

    नाम अमंगल मूल नसावन, त्रिविध ताप हर हरी मनभावना ।

    राधा नाम परम सुखदाई, भजतहीं कृपा करहिं यदुराई ।।

    यशुमति नंदन पीछे फिरेहै, जी कोऊ राधा नाम सुमिरिहै ।।

    रास विहारिनी श्यामा प्यारी, करहु कृपा बरसाने वारी ।।

    वृन्दावन है शरण तिहारी, जय जय जय वृषभानु दुलारी ।।

    ।।दोहा।।

    श्री राधा सर्वेश्वरी , रसिकेश्वर धनश्याम ।

    करहूँ निरंतर बास मै, श्री वृन्दावन धाम ।।

    राधा आरती

    आरती श्री वृषभानुसुता की,

    मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।

    त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि,

    विमल विवेकविराग विकासिनि।

    पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि,

    सुन्दरतम छवि सुन्दरता की।

    मुनि मन मोहन मोहन मोहनि,

    मधुर मनोहर मूरति सोहनि।

    अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि,

    प्रिय अति सदा सखी ललिता की।

    संतत सेव्य सत मुनि जनकी,

    आकर अमित दिव्यगुन गनकी।

    आकर्षिणी कृष्ण तन मनकी,

    अति अमूल्य सम्पति समता की।

    कृष्णात्मिका, कृष्ण सहचारिणि,

    चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि।

    जगजननि जग दुखनिवारिणि,

    आदि अनादिशक्ति विभुता की।

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