Shani Mantra: शनि की साढ़ेसाती और ढैया से मुक्ति से पाने के लिए इन मंत्रों का करें जाप
Shani Mantra साढ़े साती की वजह से व्यक्ति के जीवन में अस्थिरता आ जाती है। इस दौरान मानसिक तनाव रहता है। इसके अलावा शारीरिक परेशानी और धन की हानि होती है। इसके लिए व्यक्ति को शनिदेव के शरण और चरण में रहकर अच्छे कर्म करना चाहिए।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Shani Mantra: शनिवार का दिन न्याय के देवता शनिदेव को समर्पित होता है। इस दिन शनिदेव की पूजा-उपासना करने का विधान है। साधक शनिदेव की कृपा पाने के लिए प्रतिदिन न्याय के देवता की पूजा और मंत्र जाप कर सकते हैं। सनातन शास्त्रों में निहित है कि शनिदेव कर्मों के अनुरूप फल देते हैं। अच्छे कर्म करने वाले को अच्छे फल की प्राप्ति होती है। वहीं, बुरे कर्म करने वाले दंड के भागी होते हैं। जबकि, शनि के राशि परिवर्तन से कई राशि के जातक साढ़े साती और ढैया से पीड़ित हो जाते हैं। साढ़े साती की वजह से व्यक्ति के जीवन में अस्थिरता आ जाती है। इस दौरान मानसिक तनाव रहता है। इसके अलावा, शारीरिक परेशानी और धन की हानि होती है। इसके लिए व्यक्ति को शनिदेव के शरण और चरण में रहकर अच्छे कर्म करना चाहिए। अगर आप भी साढ़े साती या ढैया से पीड़ित हैं, तो प्रभाव कम करने के लिए हर शनिवार को इन मंत्रों का जाप अवश्य करें। आइए जानते हैं-
1. शनि महामंत्र
ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
2. शनि दोष निवारण मंत्र
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।
3. शनि का पौराणिक मंत्र
ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
4. शनि का वैदिक मंत्र
ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।
5. शनि गायत्री मंत्र
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः।
6. सेहत के लिए शनि मंत्र
ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा।
कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।
दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।
7. तांत्रिक शनि मंत्र
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
8.
महामृत्युंजय मंत्र- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
9.
ॐ पूर्वकपिमुखाय पच्चमुख हनुमंते
टं टं टं टं टं सकल शत्रु सहंरणाय स्वाहा।
10.
ऊँ नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिमुखाय गरुडानना
मं मं मं मं मं सकल विषहराय स्वाहा।।
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