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    Brihaspati Dev Aarti: गुरुवार को पूजा के समय करें मंगलकारी मंत्रों का जप एवं आरती, पूरी होगी मनचाही मुराद

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 15 Aug 2024 07:00 AM (IST)

    सनातन धर्म में गुरुवार व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही देवगुरु बृहस्पति की उपासना की जाती है। भगवान विष्णु की पूजा (Brihaspati Dev Puja Vidhi) करने से सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। नवविवाहित महिलाएं पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

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    Brihaspati Dev Aarti: बृहस्पति देव को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में गुरुवार का दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु संग देवगुरु बृहस्पति की पूजा की जाती है। साथ ही गुरुवार का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं एवं अविवाहित लड़कियां करती हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। ज्योतिष भी कुंडली में गुरु मजबूत करने के लिए गुरुवार का व्रत रख भगवान विष्णु की पूजा करने की सलाह देते हैं। अगर आप भी देवगुरु बृहस्पति की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें। साथ ही पूजा का समापन बृहस्पति देव की आरती से करें।

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    बृहस्पति देव के मंत्र

    1. देवानाम च ऋषिणाम च गुरुं कांचन सन्निभम।

    बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।

    2. ॐ बृं बृहस्पतये नमः।।

    3. ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।।

    4. रत्नाष्टापद वस्त्र राशिममलं दक्षात्किरनतं करादासीनं,

    विपणौकरं निदधतं रत्नदिराशौ परम्।

    पीतालेपन पुष्प वस्त्र मखिलालंकारं सम्भूषितम्,

    विद्यासागर पारगं सुरगुरुं वन्दे सुवर्णप्रभम्।।

    5.ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।

    यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।

    बृहस्पति देव की आरती

    जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।

    छिन छिन भोग लगा‌ऊँ, कदली फल मेवा ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय वृहस्पति देवा ॥

    तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।

    जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय वृहस्पति देवा ॥

    चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।

    सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय वृहस्पति देवा ॥

    तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।

    प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय वृहस्पति देवा ॥

    दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।

    पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय वृहस्पति देवा ॥

    सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।

    विषय विकार मिटा‌ओ, संतन सुखकारी ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय वृहस्पति देवा ॥

    जो को‌ई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे ।

    जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥

    ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय वृहस्पति देवा ॥

    सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।

    बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।