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Chaitra Navratri 2023: पाना चाहते हैं हर बाधा से मुक्ति, तो पूजा के समय जरूर करें सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ

Chaitra Navratri 2023 आज चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है। इस दिन मां कालरात्रि की पूजा-उपासना की जाती है। शास्त्रों में मां कालरात्रि की पूजा निशाकाल में करने का विधान है। इसके लिए साधक रात्रि के समय में मां की उपासना करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarThu, 30 Mar 2023 07:23 AM (IST)
Chaitra Navratri 2023: पाना चाहते हैं हर बाधा से मुक्ति, तो पूजा के समय जरूर करें सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ
Chaitra Navratri 2023: पाना चाहते हैं हर बाधा से मुक्ति, तो पूजा के समय करें सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Chaitra Navratri 2023: आज चैत्र नवरात्रि का नौवां दिन है। इस दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा उपासना की जाती है। मां सिद्धिदात्री चार भुजा धारी हैं। एक हाथ में कमल पुष्प, तो दूजे में गदा धारण की हैं। वहीं, तीसरे में चक्र, तो चौथे में शंख धारण की हैं। सिंह उनकी सवारी है। धार्मिक मान्यता है कि माता रानी की पूजा ध्यान करने से जीवन में व्याप्त समस्त दुखों का नाश होता है और मंगल का आगमन होता है। आप भी चैत्र नवरात्रि में सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ कर हर बाधा से मुक्ति पा सकते हैं। आइए जानते हैं-

॥ दुर्गा सप्तशती: सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥

शिव उवाच:

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत ॥1॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥3॥

गोपनीयं प्रयत्‍‌नेनस्वयोनिरिव पार्वति ।

मारणं मोहनं वश्यंस्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत्कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥

॥ अथ मन्त्रः ॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे ॥

ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

॥ इति मन्त्रः ॥

नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।

नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥1॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे ॥2॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥3॥

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥4॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्‍‌नी वां वीं वूं वागधीश्‍वरी ।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥5॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥6॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ।

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥7॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥8॥

इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रंमन्त्रजागर्तिहेतवे ।

अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति ॥

यस्तु कुञ्जिकाया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।

न तस्य जायतेसिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'