रक्षाबंधन 2018: इस बार नहीं करना पड़ेगा शुभ मुहूर्त का इंतजार सालों बाद हो रहा है ये सुंदर संयोग, जानें राखी बांधने की सही विधि
रविवार 26 अगस्त 2018 को रक्षाबंधन का पर्व पड़ रहा है। पंडित दीपक पांडे बता रहे हैं कि इस बार राखी सर्वोत्म मुहूर्त में हो रही है क्योंकि नहीं करना पड़ेगा सही समय का इंतजार।
कब है रक्षाबंधन का मुहूर्त
सावन मास के अंतिम दिन स्नेह आैर प्रेम का पर्व रक्षाबंधन मनाया जाता है। इस वर्ष ये त्योहार 26 अगस्त 2018 को पड़ रहा है। रक्षाबंधन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। सबसे उत्म बात ये है कि इस बार 26 अगस्त को भद्रा नहीं होगी जो कि काफी समय बाद हो रहा है। साथ ही इस बार पूर्णिमा तिथि उदियाकाल में ही प्रारंभ हो जायेंगी इसलिए इस बार राखी का शुभ काल प्रातः 5:00 बज करके 26 मिनट पर प्रारंभ हो कर रात्रि तक रहेगा। ये भी महत्वपूर्ण है कि 12 बजकर 35 मिनट तक धनिष्ठा नक्षत्र अतिगंड योग में रक्षाबंधन मनाया जाएगा, ये मुहूर्त पंचककारक हैं अत: इस बार की राखी पंचककाल में ही बांधी जायेगी। इस दिन बहन, भाई को आैर पंडित, जजमान को आैर प्रजा अपने राजा को रक्षा सूत्र बांधकर रक्षा का आश्वासन चाहते हैं।
ये राखी बांधने कर उपयुक्त विधि
रक्षाबंधन के दिन प्रातः काल विधिपूर्वक स्नान करने पश्चात पीला कपड़ा, सूत्र व पीली सरसों, केसर, चंदन, अक्षत, सोने का तार का टुकड़ा एवं दूर्वा बांधे और कलश में रख कर रक्षा सूत्र का पूजन करें। इसके पश्चात थाल में रोली, चंदन, अक्षत, दही, रक्षा सूत्र और मिठाई रखें। साथ में घी का एक दीपक भी रखें आैर उससे बहनें भाई की आरती करेंगी। अब भाई को पूर्व या उत्तर की तरफ मुंह करके बैठायें। सबसे पहले भार्इ को तिलक करें, फिर रक्षा सूत्र बांधें और इसके बाद आरती करें। अंत में मिठाई खिलाकर भाई की मंगल कामना करें। ध्यान रखें कि राखी बांधते समय भाई बहन का सर खुला नहीं होना चाहिए, आैर रक्षा बंधन पर उपहार में काले वस्त्र, आैर तीखा या नमकीन खाने का सामान न दें। सामान्य रूप से रक्षासूत्र के तौर पर तीन रंगों लाल, पीले और सफेद धागों का प्रयोग करें। यदि तीनों रंग ना मिलें तो लाल और पीले रंग का धागा तो होना ही चाहिए। उसमें चंदन लगाना अत्यंत शुभ होता है। यदह रक्षा सूत्र ना ला पायें तो कलावे का प्रयोग भी कर सकते हैं।
रक्षाबंधन से जुड़े रोचक तथ्य
द्वापर युग में द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की कलाई में साड़ी के पल्लू का एक अंश बांधा था आैर वही उनकी कौरवों से लाज बचाने का माध्यम बना था। कहते हैं कि उसी घटना के प्रतीक स्वरूप तब से अब तक रक्षाबंधन मनाया जाता है। रक्षाबंधन का ऐतिहासिक आैर पौराणिक महत्व भी है। इसी दिन अमरनाथ में शिवलिंग अपना पूर्ण रूप धारण करते हैं तथा सफेद कबूतर के जोड़े के भी दर्शन होते हैं जो पुरातन काल से इसी गुफा में निवास करते हैं। कहते हैं कि जब भगवान शिव ने पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे तो वह दो कबूतर ही वहां पर थे जो की अमर कथा के प्रभाव से अमर हो गए और आज भी वह श्रावणी पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन के दिन वहां दर्शन देते हैं। रक्षाबंधन पर बहन अपने भाई को रक्षासूत्र अपने इष्टदेव के सामने बांधे। भक्त अपने भगवान को, जिनके पास कोर्इ वाहन है तो वह उसे, छात्र अपनी पुस्तक आैर लेखनी, कर्मचारी अपने अपनी रोजी के माघ्यम, ग्वाल अपनी गौशाला की दीवार, व्यापारी अपने व्यापार स्थल आैर तकनीशियन को अपनी मशीन पर रक्षा सूत्र बांधें।