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    Numerology Prediction: महत्वाकांक्षी होते हैं अंक 4 वाले लोग, जानें उनसे जुड़ी ये महत्वपूर्ण बातें

    By Kartikey TiwariEdited By:
    Updated: Fri, 25 Dec 2020 12:30 PM (IST)

    Numerology Prediction जागरण अध्यात्म में आज हम ज्योतिषाचार्य पंडित विजय त्रिपाठी विजय से जानते हैं ​कि अंक 4 वाले जातक कैसे होते हैं। उनका पेशा गुण क्या होता है। आइए पढ़ते हैं अंक 4 वाले जातकों के बारे में।

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    Numerology Prediction: महत्वाकांक्षी होते हैं अंक 4 वाले लोग, जानें उनसे जुड़ी ये महत्वपूर्ण बातें

    Numerology Prediction: अंक ज्योतिष के आधार हम लोगों के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं। अंक 1 से लेकर अंक 9 तक के लोगों का व्यक्ति अलग-अलग होता है। उनके शुभ दिन, तारीख और पेशा भी अलग होता है। जागरण अध्यात्म में आज हम ज्योतिषाचार्य पंडित विजय त्रिपाठी 'विजय' से जानते हैं ​कि अंक 4 वाले जातक कैसे होते हैं। उनका पेशा, गुण क्या होता है। आइए पढ़ते हैं अंक 4 वाले जातकों के बारे में।

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    अंक 4: जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 4, 13, 22, 31 तारीख को हुआ हो, वे अंक 4 के जातक होते हैं।

    अंक चार का चरित्र

    कार्य क्षमता तथा श्रम का आप सही मूल्यांकन करना जानते हैं। आप भावुक हैं और इस भावुकता के कारण आप का आर्थिक दृष्टि से व्यय ज्यादा होता है।

    अंक चार मानव पर शारीरिक प्रभाव डालता है और विभिन्न अंगों तथा उनके कार्यों में सुधार करता है। वस्तु-जगत से सम्बन्ध रखने वाले पिछले मस्तिष्क पर इसका प्रभाव पड़ता है। बाह्य जगत् की वस्तुओं द्वारा जो क्रियाएं होती हैं, उनका इससे विशेष सम्बन्ध है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि स्थूल शरीरगत चेतना के ऊपर प्रभाव डालता है तथा मस्तिष्क में उत्पन्न होनेवाले परिवर्तनशील भावों का प्रतिनिधि है।

    इसका पेट, पाचन शक्ति, आंतें, स्तन, गर्भाशय, योनिस्थान, आँख, एवं नारी के समस्त गुप्तांगों पर प्रभाव पड़ता है। स्त्री के लिए आयु देने वाला, शरीर के सभी स्वाभाविक कार्य, शीत, तरल, एक-रूप करना, छाती, स्तन, पेट, रस-धातु, कफ, पुरूष के वामनेत्र, स्त्री के दक्षिणनेत्र, वातश्लेषा, रक्त, मस्तिष्क, उदर, मूत्रस्थली पर, प्रभाव डालता है। यह श्वेत रंग, जहाज, बन्दरगाह, मछली, जल, तरल पदार्थ, नर्स, दासी, भोजन, रजत एवं बैंगनी रंग के पदार्थों पर प्रभाव डालता है। यह संवेदन, आन्तरिक इच्छा, मन, उतावलापन, भावना, विशेषतः घरेलू जीवन की भावना, कल्पना, सतर्कता एवं लाभेच्छा पर प्रभाव डालता है।

    व्यक्तित्व का प्रधान लक्षण

    आपकी महत्वाकांक्षाएं बहुत बढ़ी-चढ़ी रहती हैं। तुच्छता तथा हल्कापन आपको पसन्द नहीं। उच्च पदस्थ व्यक्तियों को देखकर आप भी ऊँचा उठने का प्रयास करते हैं।

    सक्रिय जीवन

    आप अपने ही हाल में मस्त रहने वाले हैं। प्रेम के क्षेत्र में आप प्रायः असफल रहते हैं। पत्नी प्रेम की ओर से आप निश्चिन्त बने रहेंगे तथा उनसे भरपूर सहयोग भी मिलेगा।

    मानसिक सन्तुलन

    कोई भी नुक्ताचीनी या विरोध आपकी प्रकृत्ति से मेल नहीं खाता। भाइयों से या सगे सम्बन्धियों से किसी प्रकार का कोई सहयोग नहीं मिलेगा। देश, काल तथा परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को मोड़ने की क्षमता आप में है।

    कार्य पद्धति

    दैनिक जीवन के कार्यों में आप सफलता, ईमानदारी तथा उदारता का उपयोग करते हैं। अनुशासन की दृष्टि से कठोर नियन्त्रण के आप पक्षधर हैं।

    सहयोग या जन सम्पर्क

    आप नवीनता के उपासक व पुरातनता का विरोध करते हैं। जिस कार्य को आप करते हैं, समयानुकूल उसमें परिवर्तन भी करते रहते हैं। आप मित्रों के साथ बढ़-चढ़ कर खर्च कर डालते हैं, जिससे प्रायः अर्थाभाव बना रहता है।

    जीवन रहस्य

    आप विपरीत परिस्थितियों की परवाह नहीं करते। सरकारी नौकरी आपको प्रिय है तथा जीवन में संयम, मर्यादा, धर्म, कर्तव्य पालन, अनुशासनता आपका प्रधान जीवन रहस्य है।

    जन्मजात प्रवृत्ति

    गहरी निद्रा, स्वादिष्ट भोजन, कठोर परिश्रम, सजावट, सम्पन्नता, आराम आदि आपके जीवन की विशेषताएं हैं। नेतृत्व करने की प्रवृत्ति जन्मजात है तथा वाद-विवाद, आलोचना आदि आपको पसन्द नहीं है।

    आदर्श वाक्य

    हिम्मत एवं साहस की आपके जीवन में कमी नहीं रही है। परन्तु ठीक समय पर निर्णय न लेने के कारण जीवन में असफलता आना स्वाभाविक है।

    शुभ तारीखें

    4, 13, 22 और 31 सहायक एवं सहयोगी हैं।

    शुभ वर्ष

    चार मूलांक वाले व्यक्तियों के लिए जीवन के 4, 13, 22, 31, 40, 49, 58, 67, 76 और 85वाँ वर्ष अत्युत्तम व शुभ होंगे।

    शुभ दिवस

    सप्ताह के सात वारों में सोमवार, मंगलवार, गुरुवार आपके लिए सर्वाधिक शुभ है। पूर्णिमा का व्रत चिन्ता को दूर करने वाला व कल्याणकारी होता है।

    मन्त्र

    आप धनाभाव से पीड़ित हों, दुख, दर्द, परेशानी में हों, तो निम्न मन्त्र का जप करें, कन्याण होगा।

    ।। ओम् श्रीं हृीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वरवरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।।

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