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    यमुनोत्री: मान्यता है कि जो इसमें डुबकी लगाता उसे मृत्यु का भय नहीं रहता

    चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने

    By Preeti jhaEdited By: Updated: Wed, 22 Apr 2015 10:19 AM (IST)

    चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।

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    यमुनोत्री यमुना जिस भू-भाग पर उतरी, उसी स्थान का नाम यमुनोत्री है। यमुना का असली स्रोत यमुनोत्री से लगभग ३/४ कि.मी. ऊपर कालिन्द पर्व पर ४४२९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान यमुनोत्री से १०१८ मीटर अधिक ऊंचाई पर है और यहां तक पहुंचना बहुत ही कठिन है। यहीं पर बर्फ की एक झील है जो यमुना का उद्गम स्थान है। ठीक इसी कालिन्द पर्वत की गोद में यमुनोत्री धाम की स्थापना हुई है जहां पर यमुनाजी का मन्दिर है।

    यमुना की कुल लम्बाई लगभग १,३७० किमी. है जो उत्तर भारत में गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यमुना को अति पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। यमुना का स्रोत यमुनोत्री है जो उत्तराखड हिमालय पर्वर्तों में स्थित है। यमुनोत्री धाम समुद्र तल से ३२३५ मी. की ऊंचाई पर जनपद उत्तरकाशी में स्थित है। यमुना दिल्ली, हरियाणा व उत्तरप्रदेश से प्रवाहित होती है और अन्तत: इलाहाबाद में गंगा में इसका संगम हो जाता है। कुछ प्रमुख शहर जैसे दिल्ली, आगरा एवं मथुरा इसके किनारे पर स्थित हैं। उत्तराखण्ड के प्रमुख चार धामों में से यमुनोत्री एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। उन्नसवी शताब्दी में यमुनोत्री के पास ही यमुना के मन्दिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया के द्वारा कराया गया था।

    केदार खण्ड में यमुना के उद्भव और नामकरण के सम्बन्ध में कहा गया है-

    संतुष्टोभास्कर: प्रादात्पितृणां स्वमिता च वै।

    यमुना च महाभागे त्रैलोक्याहित कांक्षया।।

    नदी जाता महाभागा यमुनोत्तरवासिनी।

    यस्या वै दर्शनात्सद्य: प्रभुचयते।।

    संतुष्ट सूर्य ने यम को पितरों का स्वामी बना दिया और तीनों लोकों का हित कामना से सूर्य भगवान ने पुत्री यमुना को भी देवताओं के हित में दे दिया। तब से यमुना नदी हो गयी, यमुना उतर में 'यमुनोत्रीÓ में वास करने लगी। जिसके दर्शन मात्र से सब पापों से छुटकारा मिल जाता है।

    ऐसा कहा जाता है कि यमुना जब पृथ्वी पर आयी तो उसने श्रीकृष्ण के चारों ओर चक्कर लगाया, यमुना इसलिए कालिंदी कहलायी क्योंकि यह कालिन्द पर्वत को छूती है। उसके बाद यह पहाड़ों से नीचे उतरती है। फिर यह मैदान में खाण्डव वन मे आती है जिसे अब दिल्ली के नाम से जानते है। यमुना व यम सूर्य भगवान की सन्तान हैं। इसलिए ऐसी भी मान्यता है कि जो इसमें डुबकी लगाता है उसे मृत्यु का भय नहीं रहता।

    पौराणिक कथओं के अनुसार यमुना सूर्य की पुत्री व यम व शनि की बहन है। यह देवी विश्व के कल्याण के लिए अवतरित हुई । पहले यह हिमालय के कालिन्द पर्वत पर अवतरित हुई। यमुना का सम्बन्ध महाभारत व कृष्ण से भी है। क्योंकि इनके पिता वासुदेव ने इन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए इसे पार किया था तब प्रभु इसमें गिर गये थे परन्तु उनके चरण-कमल छू जाने से यह पवित्र हो गई। ऐसा माना जाता है भगवान विष्णु ने भी यमुना को अपने चरणों से पवित्र किया था। यही यमुना थी जिसमें प्रभु कृष्ण स्वयं ग्वालों के साथ खेला करते थे।