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    जानें क्यों नहीं हुई अश्वस्थामा की मौत, क्‍यों आज भी मुक्ति के लिए भटक रहे हैं

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Tue, 01 Mar 2016 11:06 AM (IST)

    ब्रजभूमि के पिसावा गांव से एक किमी दूर भयानक झाडियां हैं। जिन्हें झाडी़ वाले बाबा का जंगल कहते हैं। इस में कई देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर हैं और मह ...और पढ़ें

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    ब्रजभूमि के पिसावा गांव से एक किमी दूर भयानक झाडियां हैं। जिन्हें झाडी़ वाले बाबा का जंगल कहते हैं। इस में कई देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर हैं और महाभारत के अमर वीर अश्वत्थामा का निवास है। स्थानीय लोगों की ही नहीं, यह सच्चाई पुराणों में भी वर्णित है। उनके डर से कोई भी जंगल की लकडी़ लेकर बेच नहीं सकता। ऐसा करने वाले इस रहस्यमय क्षेत्र में भूल से भी नहीं आते हैं। हालांकि कुछ लोगों के अनुसार मध्य प्रदेश राज्य के असीरगढ़ किले स्थित एक शिव मंदिर में भी वे प्रतिदिन पूजा करने जाते हैं

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    आखिर महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा के साथ ऐसा क्या हुआ था? क्या वह अन्य योद्धाओ की तरह युद्ध में वीरगति को प्राप्त नहीं हो पाया या फिर उसे जीवनभर भटकने का शाप मिला था? वह पिसावा के जंगलों में भटक रहे हैं तो स्थानीय लोगों को तो कोई नुकसान नहीं होता? तगडे़ बंम्बे में कितने जहरीले जीव रहते हैं झाडियों से सटे? जाहिर है आपके द्वारा देखे गए ग्रंथों में अर्जुन, कर्ण, श्रीकृष्ण, भीम, भीष्म, दोर्णाचार्य और दुर्योधन जैसे महारथी हो वहां अश्वत्थामा पर बहुत ही कम ध्यान गया होगा। लेकिन अश्वत्थामा महाभारत के ऐसे पात्र रहे हैं जो यदि चाहते, तो युद्ध के स्वरूप को ही बदल सकते थे।

    .अश्वथामा – ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। द्वापरयुग में जब कौरव व पांडवों में युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था। अश्वथाम के संबंध में एक प्रचलित मान्यता… “मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर एक किला है। इसे असीरगढ़ का किला कहते हैं। इस किले में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि अश्वत्थामा प्रतिदिन इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।”

    गुरु द्रोणाचार्य की मृत्युः बात हजारों बरस पहले सतयुग में महाभारत के युद्ध के दिनों की है जब भीष्म पितामह की तरह गुरु द्रोणाचार्य भी पाण्डवों के विजय में सबसे बड़ी बाधा बनते जा रहे थे। श्रीकृष्ण जानते थे कि गुरु द्रोण के जीवित रहते पाण्डवों की विजय असम्भव है। इसलिए श्रीकृष्ण ने एक योजना बनाई जिसके तहत महाबली भीम ने युद्ध में अश्वत्थामा नाम के एक हाथी का वध कर दिया था। यह हाथी मालव नरेश इन्द्रवर्मा का था। यह झूठी सूचना जब युधिष्ठिर द्वारा द्रोणाचार्य को दी गई तो उन्होंने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए और समाधिष्ट होकर बैठ गए। इस अवसर का लाभ उठाकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया।

    अश्वस्थामा द्वारा पांडवों के शिविर पर हमलाः अपनी पिता की मृत्यु का समाचार मिलने के बाद द्रोण पुत्र अश्वत्थामा व्यथित हो गया। युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने दुर्योधन को वचन दिया कि वह अपने पिता की मृत्यु का बदला लेकर ही रहेगा। इसके बाद उसने किसी भी तरह से पांडवों की हत्या करने की कसम खाई। युद्ध के अंतिम दिन दुर्योधन की पराजय के बाद अश्वत्थामा ने बचे हुए कौरवों की सेना के साथ मिलकर पांडवों के शिविर पर हमला किया। उस रात उसने पांडव सेना के कई योद्धाओं पर हमला किया और मौत के घाट उतार दिए। उसने अपने पिता के हत्यारे धृष्टद्युम्न और उसके भाईयों की हत्या की, साथ उसने द्रौपदी के पांचों पुत्रों की भी हत्या कर डाली।

    ब्रह्मास्त्र चलाने के बाद गिरफ्त मेंः अपने इस कायराना हरकत के बाद अश्वत्थामा शिविर छोड़कर भाग निकला। द्रौपदी के पांचों पुत्रों की हत्या की खबर जब अर्जुन को मिली तो उन्होंने क्रुद्ध होकर रोती हुई द्रौपदी से कहा कि वह अश्वत्थामा का सर काटकर उसे अर्पित करेगा। अश्वत्थामा की तलाश में भगवान श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन निकल पड़ें। अर्जुन को देखने के बाद अश्वत्थामा असुरक्षित महसूस करने लगा। उसने अपनी सुरक्षा के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जो उसे द्रोणाचार्य ने दिया था। गुरुपुत्र होने पर भी उसे केवल ब्रह्मास्त्र छोड़ना आता था, वापस लेना नहीं आता था, तथापि अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। उधर श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को ब्रह्मास्त्र छोड़ने की सलाह दी। अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र को पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था जबकि अर्जुन ने उसके ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के लिए।

    ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के बाद अश्वत्थामा को रस्सी में बांधकर द्रौपदी के पास लाया गया। अश्वत्थामा को रस्सी से बंधा हुआ देख द्रौपदी का कोमल हृदय पिघल गया और उसने अर्जुन से अश्वत्थामा को बन्धनमुक्त करने के लिए कहा।

    ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के बाद अश्वत्थामा को रस्सी में बांधकर द्रौपदी के पास लाया गया। अश्वत्थामा को रस्सी से बंधा हुआ देख द्रौपदी का कोमल हृदय पिघल गया और उसने अर्जुन से अश्वत्थामा को बन्धनमुक्त करने के लिए कहा.

    अश्वत्थामा के इस कृत्य के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उसे शाप दिया कि ‘तू पापी लोगों का पाप ढोता हुआ तीन हज़ार वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा। तेरे शरीर से सदैव रक्त की दुर्गंध नि:सृत होती रहेगी। तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा तथा मानव और समाज भी तेरे से दूरी बनाकर रहेंगे। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के शाप के बाद अश्वत्थामा आज भी अपनी मौत की तलाश में भटकता रहा लेकिन उसे मौत नसीब नहीं हुई और वे तब से मथुरा के इस क्षेत्र में ही अपने स्थल पर विद्यमान बताए जाते हैं।

    दूर-दूर से भक्त यहां परिक्रमा देने आते हैं भक्त। यहां मौजूद कई मंदिरों पर उनका तांता लगा रहता है, इतना ही नहीं स्थानीय लोगों के अनुसार यहां आस पास कई पुराने खण्डहर हैं, जो पता नहीं किस महानुभूति के बनाए हैं। खास बात यह है कि जंगल की लकडियां बेचने की हिमाकत कोई नहीं करता है। और विकराल जंगल में कोई भीतर भी नहीं जाता, परिक्रमा मार्ग कच्ची पगडंडियों से होकर गुजरता है।

    बुरहानपुर के इतिहासविद डॉ. मोहम्मद शफी (प्रोफेसर, सेवा सदन महाविद्यालय, बुरहानपुर) ने बताया कि बुरहानपुर का इतिहास महाभारतकाल से जुड़ा हुआ है। पहले यह जगह खांडव वन से जुड़ी हुई थी। किले का नाम असीरगढ़ यहां के एक प्रमुख चरवाहे आसा अहीर के नाम पर रखा गया था। किले को यह स्वरूप 1380 ई. में फारूखी वंश के बादशाहों ने दिया था।

    जहां तक अश्वत्थामा की बात है, तो शफी साहब फरमाते हैं कि मैंने बचपन से ही इन किंवदंतियों को सुना है। मानो तो यह सच है न मानो तो झूठ।

    महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक अश्वत्थामा थे। ये कौरवों व पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। हनुमानजी आदि आठ अमर लोगों में अश्वत्थामा का नाम भी आता है। इस विषय में एक श्लोक प्रचलित है-

    अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।

    कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥

    सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।

    जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

    अर्थात अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम व ऋषि मार्कण्डेय- ये आठों अमर हैं।