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त्रिनेत्र गणेश रणथम्भौर सिर्फ यहां होते हैं तीन नेत्रों वाले गणपति के दर्शन

बुधवार गणेश जी की पूजा का दिन माना जाता है इस दिन हम आपको बताते हैं प्रथम गणेश मंदिर भारत के एकमात्र त्रिनेत्र गणपति मंदिर के बारे में।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 08 Aug 2017 04:44 PM (IST)Updated: Wed, 28 Mar 2018 04:35 PM (IST)
त्रिनेत्र गणेश रणथम्भौर सिर्फ यहां होते हैं तीन नेत्रों वाले गणपति के दर्शन
त्रिनेत्र गणेश रणथम्भौर सिर्फ यहां होते हैं तीन नेत्रों वाले गणपति के दर्शन

राजस्थान में है ये मंदिर

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यह मंदिर भारत के राजस्थान प्रांत में सवाई माधोपुर जिले में है, जो कि विश्व धरोहर में शामिल रणथंभोर दुर्ग के भीतर बना हुआ है। यह मंदिर प्रकृति की शक्‍ति और भक्‍ति का अनोखा संगम है। दुनियाभर से लाखों दर्शनार्थी यहाँ पर त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन के लिए आते हैं। कहते हैं कि मंदिर के अंदर भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है। इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहाँ भगवान गणेश जी अपने पूरे परिवार, पत्‍नियों रिद्दि, सिद्दि और दो पुत्रों शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है। भारत में चार स्वयंभू गणेश मंदिर हैं, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम हैं। 

जानें मंदिर का इतिहास

कहते हैं कि महाराजा विक्रमादित्य जिन्होंने विक्रम संवत् की शुरूआत की थी प्रत्येक बुधवार उज्जैन से चलकर रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन हेतु नियमित जाते थे। महाराजा हम्मीरदेव चौहान व दिल्ली शासक अलाउद्दीन खिलजी का युद्ध 1299-1301 ईस्वी के बीच रणथम्भौर हुआ। उस समय अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर के दुर्ग को चारों तरफ से घेर लिया था, नौ महीने से भी ज्‍यादा समय तक किला चारों तरफ से मुगल सेना से घिरा रहा। इसके चलते वहां रसद धीरे धीरे खत्म होने लगी, उस समय महाराजा को स्वप्न में गणेश जी ने कहा कि मेरी पूजा करो तुम्हें मैं सब परेशानी दूर कर दूंगा। राजा हम्मीरदेव ने गणेश द्वारा बताये स्थान पर मूर्ति स्‍थापित कर पूजा की। 

मंदिर से जुड़ी किंवदंतियां

1- कहते हैं कि भगवान राम ने जिस स्वयंभू मूर्ति की पूजा की थी उसी मूर्ति को हम्मीरदेव ने यहां पर स्‍थापित किया था।

2- भगवान राम ने लंका कूच करते समय इसी गणेश का अभिषेक कर पूजन किया था। अत: त्रेतायुग में यह प्रतिमा रणथम्भौर में स्वयंभू रूप में स्थापित हुई और लुप्त हो गई।

3- एक और मान्यता के अनुसार जब द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रुक्‍मणी से हुआ था तब भगवान कृष्ण गलती से गणेश जी को बुलाना भूल गए जिससे भगवान गणेश नाराज हो गए और अपने वाहन चूहे को आदेश दिया की विशाल सेना के साथ जाओ और कृष्ण के रथ के आगे सम्पूर्ण धरती में बिल खोद डालो। इस प्रकार भगवान कृष्ण का रथ धरती में धँस गया और आगे नहीं बढ़ पाये। तब श्रीकृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे रणथम्भौर में इसी जगह पर गणेश जी को लेने आए। तभी से भगवान गणेश को विवाह व मांगलिक कार्यों में प्रथम आमंत्रित किया जाता है। यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है।

त्रिनेत्र वाले एकमात्र गणेश

रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी की प्रतिमा दुनिया की एक मात्र गणेश मूर्ती है जो तीसरा नयन धारण किए दिखाई पड़ती है। गजवंदनम् चितयम् नामक ग्रंथ में विनायक के तीसरे नेत्र का वर्णन किया गया है। मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी के रूप में सौम पुत्र गणपति को सौंप दिया था और इस तरह महादेव की सारी शक्तियां गजानन में निहित हो गईं और वे त्रिनेत्र बने। 


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