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    श्री वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर: 50 हजार से एक लाख लोग यहां रोज दर्शन करते हैं

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Thu, 29 Oct 2015 01:17 PM (IST)

    अपने देश में धार्मिक पर्यटन सबसे ज्यादा प्रचलन में है। ऐसे पर्यटन का जीवन में खास महत्व रहा है-घूमने की दृष्टि से और आस्था के लिहाज से। दक्षिण भारत में तिरुपति एक ऐसी जगह है, जहां हर भारतीय भगवान बालाजी के दर्शन, लड्डू और भगवान का प्रसाद के लिए जाना चाहता

    अपने देश में धार्मिक पर्यटन सबसे ज्यादा प्रचलन में है। ऐसे पर्यटन का जीवन में खास महत्व रहा है-घूमने की दृष्टि से और आस्था के लिहाज से। दक्षिण भारत में तिरुपति एक ऐसी जगह है, जहां हर भारतीय भगवान

    बालाजी के दर्शन, लड्डू और भगवान का प्रसाद के लिए जाना चाहता है...

    आंध्र प्रदेश में तिरुपति से करीब २२ किलोमीटर दूर तिरुमाला पहाड़ियों पर भगवान वेंकटेश्वर बालाजी का विशाल परिसर वाला मंदिर है। तकरीबन ५० हजार से एक लाख लोग यहां रोज भगवान बालाजी के दर्शन करते हैं। मंदिर की गतिविधियां सुबह ५ बजे से शुरू होकर तकरीबन रात ९ बजे तक चलती रहती हैं। इतनी बड़ी संख्या में रोज भीड़ का प्रबंधन खुद में बड़ी बात है।

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    राजा श्रीकृष्ण देवराय और उनके

    मंत्री तेनालीराम की कहानियां खूब

    पढ़ी और सुनी हैं। तिरुमाला का यह

    विश्व प्रसिद्ध मंदिर उन्हीं के साम्राज्य

    का अंग था। यह आंध्र प्रदेश के

    दक्षिणी हिस्से में चित्तूर जिले में है।

    तिरुपति सड़क, रेल और हवाई मार्ग

    से बहुत बेहतर ढंग से जुड़ा है। देश

    के तकरीबन हर हिस्से से तिरुपति के

    लिए ट्रेनें आती हैं। वैसे तो तिरुपति का

    अपना भी एक छोटा-सा हवाई अड्डा

    है, लेकिन इसके करीब सबसे बड़ा

    हवाई अड्डा चेन्नई का है, जो यहां से

    करीब १२० किलोमीटर दूर है।

    अगर आप रेल से तिरुपति आ रहे

    हैं तो स्टेशन से बाहर निकलते ही

    यह शहर धार्मिक गहमागहमी में

    लीन महसूस होने लगेगा। बाहर से

    यह स्टेशन भी कमोबेश मंदिर का

    ही स्थापत्य लिए हुए है। तिरुपति में

    रुकने की तमाम व्यवस्थाएं हैं। महंगे

    और सस्ते होटल। तिरुपति तिरुमाला

    देवस्थानम ट्रस्ट का विशाल गेस्ट

    हाउस। रेलवे स्टेशन के करीब से ही

    हर थोड़ी देर पर बसें तिरुमाला के

    लिए जाती हैं। यहीं से प्रीपेड टैक्सियां

    भी उपलब्ध होती हैं। यहां से तिरुमाला

    का सफर शुरू होते ही कुछ ही मिनटों

    में आप शहर की तमाम सड़कों से

    गुजरते हुए उस विशाल गेट पर पहुंचते

    हैं, जहां से तिरुमाला की पहाड़ियां शुरू

    हो जाती हैं। इस जगह से तिरुमाला

    करीब २२ किलोमीटर है। अगर आप

    टैक्सी और बस में हैं, तो रास्ते भर

    आपको घुमावदार रास्ते मिलेंगे और

    सामने आपकी आंखों से आंखें मिलाते

    ऊंचे पहाड़। इन पहाड़ों को काटकर

    बनाए गए रास्ते सुरक्षित और खूबसूरत

    हैं। दोनों ओर तमाम तरह के पेड़ और

    फूलों की डालियां मन मोह लेंगी।

    अगर यह सफर भोर में शुरू हो रहा

    है तो पहाड़ों के क्षितिज से झांकते सूर्य

    और उसकी आभामय लालिमा एवं

    सुबह की ताजी हवा आपको ऊर्जा

    और ताजगी से भर देगी। यहां एक

    खास बात और देखेंगे कि ये रास्ता

    वन-वे है यहां पहाड़ पर एक ओर

    से वाहन चढ़ते हैं और दूसरी ओर से

    उतरते हैं। यह व्यवस्था पहाड़ी रास्तों

    पर आमतौर पर होने वाली दुश्वारियों

    और दुर्घटनाओं को लगभग खत्म कर

    देती है। रास्ता करीब घंटे भर का है।

    हां, तिरुपति से एक पैदल रास्ता

    भी तिरुमाला के लिए जाता है। १४

    किलोमीटर का यह रास्ता अपने

    आप में एक एडवेंचर टूर है। इसमें

    कभी आप सुरंग में होते हैं, तो कभी

    पहाड़ों के बीच और कभी घुमावदार

    सड़कों के लगे पैदल रास्ते पर। यह

    दूरी तय करने में करीब चार-पांच

    घंटे लगते हैं। रास्ते भर खाने पीने की

    कैंटीन हैं, तो आराम करने की जगहें

    भी। तिरुमाला पहाड़ियां जबरदस्त

    प्राकृतिक छटा और सुंदरता से भरी हुई

    हैं। केवल तिरुमाला में ही नहीं, बल्कि

    यहां से दूर-दूर तक ये पहाड़ियां फैली

    हुई हैं। तिरुमाला की सात उल्लेखनीय

    चोटियां हैं, जिनमें वेंकटाद्रि नाम की

    सातवीं चोटी पर श्री वेंकटेश्वर पवित्र व

    प्राचीन मंदिर स्थित है। प्रभु वेंकटेश्वर

    या बालाजी को भगवान विष्णु का

    अवतार माना जाता है। ऐसा माना

    जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के

    लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब

    के किनारे निवास किया था। यह

    तालाब तिरुमाला के पास स्थित है।

    समुद्र तल से ३२०० फीट की ऊंचाई

    पर स्थित यह मंदिर कई शताब्दी

    पूर्व बना था। यह दक्षिण भारतीय

    वास्तुकला और शिल्प कला का

    शानदार उदाहरण भी है। नौवीं शताब्दी

    में कांचीपुरम के पल्लव शासकों ने

    इस पर आधिपत्य स्थापित किया तो

    १५वीं सदी में जब ये विजयनगर वंश

    के अधीन आया तो इसकी ख्याति और

    बढ़ गई।

    वर्ष १९३३ से ही एक स्वतंत्र ट्रस्ट

    इसका प्रबंधन संभाल रहा है।

    यहां की हर गतिविधि पर उसी ट्रस्ट

    का नियंत्रण है, जो बालाजी मंदिर के

    क्रियाकलापों को संचालित करता है।

    तिरुमाला में ट्रस्ट के तमाम गेस्टहाउस

    हैं, जहां हजारों लोग एक साथ ठहर

    सकते हैं। यहां देश के कुछ बड़े

    कारपोरेट हाउसेज के भी गेस्टहाउस

    हैं। गेस्टहाउस हर तरह के हैं-साधारण

    से लेकर पांच सितारा सुविधाओं वाले।

    साथ में अस्पताल, केंद्रीय नियंत्रण

    कक्ष, हर ओर फैले पूछताछ केंद्र, बड़ा

    मार्केटिंग कॉम्पलैक्स, पुलिस स्टेशन,

    कम्युनिटी सेंटर और खाने पीने की

    प्रचुर सुविधाएं। तिरुमाला में आते ही

    हवा में अगर मंत्रोच्चार घुले मिलते हैं,

    तो पर्यावरण आमतौर पर शुद्ध और

    शीतलता लिए महसूस होता है। यहां

    एक खास डिजाइन की बसों का बेड़ा

    लगातार चलता रहता है, जो लोगों को

    इस कस्बे में चारों ओर घुमाता रहता

    है। नारंगी रंग की इन बसों का अग्रिम

    हिस्सा इस तरह बनाया गया है, मानो

    ये रथ सरीखे लगें। वैसे, अगर आप

    इस मंदिर में भगवान के दर्शन की

    योजना बना रहे हों, तो तिरुमाला में

    एक रात रुकने की कोशिश जरूर करें,

    क्योंकि यहां रात का रंग अलग ही

    होता है। छोटा-सा यह धार्मिक कस्बा

    हर ओर रोशनी से जगमगाता मिलता

    है। रातभर में यहां फूड ज्वाइंट्स से

    लेकर रास्तों तक श्रद्धालुओं की चहल

    पहल दिखती रहती है। यहां आने

    से पहले आप ऑनलाइन बुकिंग से

    अपने ठहरने से लेकर दर्शन तक को

    सुनिश्चित कर सकते हैं।

    मंदिर में दर्शन का सिलसिला भोर

    से ही शुरू हो जाता है। सुबह विशेष

    आरती सेवा के बाद मंदिर में ठसमठस

    भीड़ चलती रहती है। दर्शन के लिए

    लोगों को घंटों इंतजार करते हुए

    कई किलोमीटर के रास्तों से

    गुजरना होता है। हालांकि

    अगर आप पैसे खर्च

    करें, तो यहां दर्शनों और

    आरती में शामिल होने

    की अलग अलग खास

    सुविधाएं भी आपको

    आसानी से मिल जाएंगी,

    हालांकि यह तर्क का विषय

    है कि भगवान के दरबार में

    ऐसी व्यवस्थाएं क्यों होनी चाहिए,

    कम से कम इस जगह तो भक्तों के

    साथ पैसों के लिहाज से भेदभाव

    नहीं किया जाए, लेकिन मंदिर

    को अपने धनवान भक्तों से

    मोटी कमाई भी होती है।

    हालांकि एक दिन में

    आने वाले ५० हजार

    से ज्यादा भक्त भी इस

    कमाई में प्रतिदिन लाखों

    या करोड़ों का इजाफा

    करते हैं। कभी-कभी तो

    यहां रोज दर्शन के लिए

    आने वाले भक्तों की संख्या

    एक या डेढ़ लाख के ऊपर पहुंच

    जाती है। हालांकि इस बात की तारीफ

    करनी चाहिए कि भीड़ का प्रबंधन

    और नियंत्रण बहुत बेहतर ढंग से किया

    जाता है, क्योंकि इसमें कई रास्तों से

    मंदिर के मुख्य प्रकोष्ठ तक दर्शनार्थी

    आते हैं।

    लिहाजा कब और कितनी देर तक

    किस रास्ते को रोकना है और

    किसे चालू करना है-कितने श्रद्धालुओं

    को एक साथ आगे बढ़ाना है, जो मंदिर

    के कर्ताधर्ता रोज करते हैं। चूंकि मंदिर

    के मुख्य या केंद्रीय प्रकोष्ठ तक पहुंचते

    ही सारे दर्शनार्थी एक साथ मिल जाते

    हैं लिहाजा यहां सबसे ज्यादा भीड़ होती

    है। जब आप भगवान वेंकटेश्वर के

    एकदम करीब होते हैं, तो आपके पास

    उनके सामने खास श्रद्धामय होने के

    लिए कुछ ही सेकंड का समय मिलता

    है। कई बार कई लोग इस अथाह

    भीड़ में भी भगवान के प्रति श्रद्धाभाव

    और भक्ति-भाव से भर पाते हैं, तो

    कई बार भीड़ की धक्का-मुक्की की

    लहर के बीच ही भगवान के सामने से

    हाथ जोड़े निकल जाते हैं। वैसे, मंदिर

    ट्रस्ट उम्रदराज लोगों के लिए अलग से

    दर्शन की व्यवस्था भी करता है। मुख्य

    प्रकोष्ठ के आसपास हुंडियां और दान

    पात्र हैं, जिसमें धन अर्पण की होड़

    लगी रहती है।

    बताया जाता है कि रोज जब इन्हें

    खोला जाता है, तो इन्हें देखकर हैरत

    का भाव आ सकता है। एक अलग

    विभाग ही इन दान पात्र और हुंडियों

    में गिरने वाले धन या प्रतिभूतियों

    की गिनती करता है। एक महीने में

    मंदिर ट्रस्ट को दान से कई सौ करोड़

    के दान मिलते हैं, जिन्हें वह तमाम

    धार्मिक गतिविधियों से लेकर इस

    स्थान की अग्रिम योजनाओं पर खर्च

    करता है। हालांकि इसमें कोई शक

    नहीं कि तिरुपति बालाजी मंदिर ट्रस्ट

    का खजाना दिनों दिन और बढ़ता जा

    रहा है।

    कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति

    वैष्णव संप्रदाय से हुई है। यह संप्रदाय

    समानता और प्रेम के सिद्धांत को

    मानता है। मान्यता है कि यहां आने के

    पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन

    से मुक्ति मिल जाती है।

    दर्शन करने के बाद जैसे ही आप मुख्य

    प्रकोष्ठ से बाहर निकलते हैं, परिसर

    के सटा हुआ लड्डू वितरण केंद्र है।

    यहां के लड्डुओं के बारे में काफी

    सुना और कहा गया है। एक लड्डू

    काफी बड़ा तकरीबन २०० ग्राम के

    आसपास का होता है। यूं तो दो मंजिला

    इस लड्डू वितरण केंद्र में कम से कम

    ५० काउंटर हैं, जिसमें हमेशा लंबी

    कतारें लगी रहती हैं। मंदिर का लड्डू

    उत्पादन केंद्र रोज लाखों लड्डू बनाता

    है, लेकिन तब भी रोज ही यहां इनकी

    कमी पड़ जाती है।

    यहां से निकलते ही मंदिर परिसर में

    एक और बड़ी इमारत हर समय हजारों

    श्रद्धालुओं का इतंजार करती है। इसे

    अन्नप्रसादम केंद्र कहा जाता है। इस

    विशाल दो मंजिला इमारत में कम

    से कम आठ बड़े हाल हैं। यहां हर

    आधे घंटे में एक हाल में एक हजार

    लोगों को लगातार मुफ्त खाना परोसा

    जाता है। उन्हें भरपेट खिलाया जाता

    है। यह भगवान बालाजी का ऐसा

    प्रसाद है, जिसका स्वाद हर दर्शनार्थी

    को जरूर लेना चाहिए। अन्नप्रसादम

    का यह केंद्र दुनियाभर के मेगा

    किचन में शामिल है। रोज यहां

    एक लाख लोगों का खाना

    बनता है। यहां किचन में उन्नत

    मशीनों और सौर ऊर्जा के

    जरिए सब कुछ बहुत व्यवस्थित

    ढंग से होता है। हर आधे घंटे में

    एक हाल में खाना परोस देना। उन्हें

    खिलाना और फिर उस हाल की

    तुरत-फुरत सफाई आसान नहीं,

    लेकिन वह भी यहां के कर्मचारियों

    के कुशल प्रबंधन का नतीजा है।

    एक हाल में भोजन की पंगत के

    उठते ही दूसरे हाल में केले के पत्तों

    पर एक हजार लोगों के लिए खाना

    सज चुका होता है। अन्नप्रसादम का

    काम भी सुबह तकरीबन साढ़े आठ

    बजे से शुरू होकर रात ९.३० बजे तक

    चलता रहता है। इतने लोगों को एक

    साथ खिलाना और उनके चेहरों पर

    प्रसन्नता और तृप्ति का भाव देखना

    आसान नहीं, लेकिन यहां के सैकड़ों

    कुशल कर्मचारी इसे रोज अंजाम

    देते हैं।

    मंदिर परिसर में खूबसूरती से बनाए

    गए कई द्वार, मंडपम और

    छोटे मंदिर हैं। तिरुमाला में एक बहुत

    शानदार ४६० एकड़ का शानदार

    गार्डन है। तिरुमाला में श्री वेंकटेश्वर

    संग्रहालय भी है। यहां पत्थर और

    लकड़ी की बनी वस्तुएं, पूजा सामग्री,

    पारंपरिक कला और वास्तुशिल्प से

    संबंधित वस्तुओं का प्रदर्शन किया

    गया है।

    यह भी कहा जाता है कि अगर आप

    बालाजी के मंदिर में दर्शन करने

    जा रहे हों, तो श्री पद्मावती समोवर

    मंदिर भी जरूर जाएं। तिरुपति से

    पांच किमी. दूर यह मंदिर भगवान

    वेंकटेश्वर की पत्नी श्री पद्मावती को

    समर्पित है। कहा जाता है कि तिरुमला

    की यात्रा तब तक पूरी नहीं हो सकती

    जब तक इस मंदिर के दर्शन न कर

    लिए जाएं। साथ ही यहां और भी कई

    मंदिर हैं, जिनका पैकेज टूर सहज

    उपलब्ध है, जिन्हें देखना आपकी यात्रा

    को और समृद्ध करता है। तिरुपति

    से जब आप सड़क या रेल मार्ग के

    जरिए वापस लौटेंगे, तो चाहे चेन्नई

    की ओर से लौटें या फिर हैदराबाद की

    ओर से। रास्ते भर दिखने वाले पहाड़ों

    और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद भी

    जरूर लें, क्योंकि यह इस यात्रा में

    आपको बोनस के रूप में मिलता है।

    वाकई यहां के हर जर्रे में प्रकृति की

    खूबसूरती बिखरी पड़ी है। यह ऐसा

    इलाका भी है, जो हमेशा सद्भाव के

    लिए जाना जाता रहा है।