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    पंच बदरी-पंच केदार, आस्था के दस द्वार

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    Updated: Thu, 16 May 2013 11:42 AM (IST)

    देवभूमि में बदरी-केदार धाम का जितना महात्म्य है, उतना ही पंच बदरी-पंच केदार का भी। असल में ये मंदिर भी बदरी-केदार धाम के ही अंग हैं। हालांकि, इनमें कुछ स्थल सालभर दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं, लेकिन बाकी में चारधाम सरीखी ही कपाट खुलने व बंद होने की परंपरा है। इन्हीं में से एक तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के क

    देहरादून। देवभूमि में बदरी-केदार धाम का जितना महात्म्य है, उतना ही पंच बदरी-पंच केदार का भी। असल में ये मंदिर भी बदरी-केदार धाम के ही अंग हैं। हालांकि, इनमें कुछ स्थल सालभर दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं, लेकिन बाकी में चारधाम सरीखी ही कपाट खुलने व बंद होने की परंपरा है। इन्हीं में से एक तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के कपाट गुरुवार सुबह 7.15 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। इससे पूर्व ब्रह्ममुहूर्त में सुबह चार बजे भूबैकुंठ बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने हैं।

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    ये हैं पांच बदरी-

    श्री बदरी नारायण- समुद्रतल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है भूबैकुंठ बदरीनाथ धाम। माना जाता है कि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था। वर्तमान में शंकराचार्य की निर्धारित परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज नंबूदरीपाद ब्राह्मण भगवान बदरीविशाल की पूजा-अर्चना करते हैं।

    आदि बदरी- कर्णप्रयाग-रानीखेत मार्ग पर अवस्थित है। यह तीर्थ स्थल 16 मंदिरों का एक समूह है, जिसका मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर समूह के सम्मुख एक जलधारा, जो उत्तर वाहिनी गंगा के नाम से प्रसिद्ध है, प्रवाहित होती है। माना जाता है कि यह तीर्थ स्थल गुप्तकाल में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया।

    वृद्ध बदरी- बदरीनाथ से आठ किमी पूर्व 1380 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा के सुरम्य धारों में स्थित है वृद्ध बदरी धाम। इस मंदिर की खासियत इसका सालभर खुले रहना है। इसे पांचवां बदरी कहा गया है।

    योग-ध्यान बदरी- जोशीमठ से 20 किमी दूर 1920 मीटर की ऊंचाई दूर पांडुकेश्वर नामक स्थान पर स्थित हैं तृतीय योग-ध्यान बदरी। पांडु द्वारा निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में कमल पुष्प पर आसीन मूर्तिमान भगवान योगमुद्रा में दर्शन देते हैं।

    भविष्य बदरी- समुद्रतल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर तपोवन से चार किमी पैदल मार्ग पर स्थित हैं भविष्य बदरी। कहते हैं कि अगस्त्य ऋषि ने यहां तपस्या की थी। लेकिन, विकट चढ़ाई के कारण शारीरिक रूप से फिट यात्री ही यहां पहुंच पाते हैं।

    ये हैं पांच केदार-

    श्री केदारनाथ धाम- गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर अवस्थित है देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम। कहते हैं कि समुद्रतल से 11746 फीट की ऊंचाई पर केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात् भैंसे का पिछला अंग (भाग) है। मंदिर की ऊंचाई 80 फीट है, जो एक विशाल चबूतरे पर खड़ा है।

    तुंगनाथ- तृतीय केदार के रूप में प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर सबसे अधिक समुद्रतल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां भगवान शिव की भुजा के रूप में पूजा-अर्चना होती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर हिमालय के रमणीक स्थलों में सबसे अनुपम है।

    रुद्रनाथ- यह मंदिर समुद्रतल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है, जिसमें भगवान शिव की मुखाकृति की पूजा होती है। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम घाटी के दमुक गांव से गुजरता है। लेकिन, बेहद दुर्गम होने के कारण श्रद्धालुओं को यहां पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं। इसलिए वे गोपेश्वर के निकट सगर गांव होकर ही यहां जाना पसंद करते हैं।

    मद्महेश्वर- चौखंभा शिखर की तलहटी में 3289 मीटर की ऊंचाई स्थित मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम् के रूप में की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता के अनुसार यहां का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं।

    कल्पेश्वर- यहां भगवान शिव की जटा पूजी जाती हैं। कहते हैं कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान कल्पेश्वर या कल्पनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। श्रद्धालु 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मंदिर तक 10 किमी की पैदल दूरी तय कर उसके गर्भगृह में भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान तक पहुंचते हैं। गर्भगृह का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर है।

    कपाट खुलने का मुहूर्त-

    श्री बदरीनाथ धाम- 16 मई, ब्रह्ममुहूर्त में सुबह 4.00 बजे

    श्री तुंगनाथ- 16 मई, सुबह 7.15 बजे

    श्री मद्महेश्वर- 20 मई, पूर्वाह्न 11.00 बजे

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